चल रे मन आज कुछ नया करते हैं, आसमां को जमीं और जमीं, को आसमां पर ले चलते हैं। आँगन में बिखरी यादों के लम्हों को, मेंहदी वाली हथेलियों से समेटते हैं। चल रे मन ……………………॥ पनीली अँखियों में रुठे सपनों को ढूंढते हैं, बहते हुए आंसूओं का समन्दर ढूंढते […]
काव्यभाषा
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