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बिल्कुल सुई की नोंक पे चलने लगे हैं लोग,
स्तर से एकदम ही गिरने लगे हैं लोग।
कहने के लिए सिर्फ है हाथों में तराजू,
आंखों में धूल झोंक के ठगने लगे हैं लोग।
लगता है मोहल्ले में कोई हादसा हुआ,
घर से निकल के छत पे टहलने लगे हैं लोग।
डाकू तमाम संत की श्रेणी में आ गए,
गिरगिट की तरह रुप बदलने लगे हैं लोग।
पहले से कहीं ज्यादा डर लग रहा मुझे,
मजहब की ओर जब से बढ़ने लगे हैं लोग।
यह भी है एक गम को भुलाने का तरीका,
कुछ देर के लिए जो हंसने लगे हैं लोग।
इस जिंदगी ने इतना मजबूर कर दिया,
अब देखता हूं कुछ भी करने लगे हैं लोग॥
#डॉ.कृष्ण कुमार तिवारी ‘नीरव’
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