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मिटा के हस्ती मैं अपनी सारी तुझे खुदा कर गजल कहूँगी;
सनम ये साँसो की रौनकें सब तुझे अता कर गजल कहूँगी !!
हाँ जिस्म महिवाल सोणियो का,डुबा गई थी वो कच्ची माटी;
मिटा न पाई जो इश्क़ उनका वही वफा कर गजल कहूँगी !!
लगी हुई है जो मेरी जानिब,वही तुझे भी जला रही है ;
जो और भड़का दे इश्क़े आतिश,मैं वो हवा कर गजल कहूँगी!!
फिरे फकीरों सा रात भर तू,है तुझको आख़िर तलाश किस की ;
ऐ चाँद सानो पे मेरे आजा तुझे सुला कर गजल कहूँगी!!
सनम तू ईमान मेरा अब से,ये जिस्मों जाँ सब निसार तुझ पर ;
मैं तेरी राहों में सुर्ख गुल सा ये दिल बिछा कर गजल कहूँगी !!
है मुझ पे उस रब की ये इनायत,जो उसने “मेघा” कलम है बख़्शी;
कलम जो गुलजार बन के महके,मैं मुस्कुरा कर गजल कहूँगी !!
#मेघा योगी
परिचय:
नाम-मेघा योगी
साहित्यिक उपनाम-मेघा
वर्तमान पता- गुना
राज्य-मध्य प्रदेश
शहर-गुना
शिक्षा-Bsc biotechnology PGDCA
कार्यक्षेत्र-विद्यार्थी
विधा -गीत,गजल,मुक्तक,छंद,लेख,लघुकथा,कहानीआदि
मोबाइल/व्हाट्स ऐप –
प्रकाशन-देश की ईपत्रिकाओं सहित विभिन्न पत्रिकाओं एवं अखबारों में समय समय पर रचनाओं का प्रकाशन,साझा गजल संग्रह गुंजन
सम्मान-अंतरा शब्द शक्ति सम्मान
ब्लॉग-
अन्य उपलब्धियाँ-
लेखन का उद्देश्य -माँ हिंदी की सेवा कर आत्मसंतुष्टि को प्राप्त करना
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