या तो बिगाड दे
या तो संवार दे
ये जिस्म मे जो जान दी है
लग रही बडी महेंगी है
मेरे बस के बाहर है
ऐ मौला,,,
जरा तु इसका हिसाब दे
गुनाह जो करवाये तुने ही
चल जरा इनको बख्श तु दे
इतना कठीन समय दिया है
इससे मिली मानहानी भी है
ऐसे ऐसोंसे पडा पाला है
या तो उनको सजा दे
या फीर मुझे अौकात दे
ऐ मौला ,,,,,
अब ना सिर्फ नसिहत तु दे
ना निंद मे कोई ख्वाब दे
पुरा कर जाउं खुद के दम पे
या तो ऐसे हालात दे
या उतनी अौकात दे
मौत का नाम लेकर
ना ईस कदर धमका तु दे
बहुत बाकी है हिसाब तेरा
हो सके तो,,,
एक अौर जिंदगि दे
एक अौर जिंदगी दे
ऐ मौला ,,,,
# सुनिता त्रिवेदी
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