एक पीपल जिसे मैं सालों से
देखती रही अकेला !
चुप, शांत और दु:ख से तड़फते हुए
कंपकपातें होठ
बोलना चाहते हो अपनी हजारों ख्वाहिशें
कभी- कभी वो विद्रोह पर उतरता है
और हिला देता है अपनी शाख -शाख ,
पत्ते मचल उठते हैं, मचा देते हैं शोर
डालियों से दूर होते हुए!
पेड़ शांत हो जाता है, करने लगता पछतावा
अपने उतेजित होने पर
बहुत देर तक!
चुप खड़ा काटता रहता है अपने ही होठ़ !
एक दिन अपनी उदासियों को ओढ़े
मैं बैठी थी उसके पास जाकर!
पर देखा मैने उस दिन पेड़ बतिया रहा था
किसी से!
कभी धीरे तो कभी तेज बातों का दोर ना खत्म होने तक!
पिछली शाम कोई रख गया था
कुछ तस्वीरें जिन पर कोरे गये थे देवता
पर तड़क चुके थे काँच उनके
एक आधी टूटी मूर्ति थी!
जो कल तक भोग लगाती थी सबसे पहले किसी के घर
आज ओधीं पडी़ बतिया रही थी पीपल से
अपने अच्छे दिनों की बातें
कोई बाँध गया था कुछ धागे मोली के
पेड़ झूम रहा था हिलोरे खाते हुए!
जैसे बाँध दिये हो मंखी बच्चे के गले में
और बच्चा खेलता रहता है दिन भर उनसे!
अकेले और उदास पीपल की दुआएँ सुन ली थी देवता ने!
अब हर रोज मूर्ति के देवता पीपल से बतलाते हैं
इंसानों की बातें!
नाम-प्रियंका भारद्वाज
साहित्यिक उपनाम-प्रियंकाभारद्वाज
वर्तमान पता- वी. पी. ओ मुण्डा, हनुमानगढ
राज्य-राजस्थान
शहर-हनुमानगढ़
शिक्षा- एम. ए हिंदी अध्ययनरत
कार्यक्षेत्र- विद्यार्थी
विधा – कविता
प्रकाशन- विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
सम्मान- अभी तक इस से वचिंत है!
अन्य उपलब्धियाँ- गाँव मुण्डा में निशुल्क पुस्तकालय का संचालन!
लेखन का उद्देश्य- समाज को बेहतर दिशा मिले!
एक मौलिक रचना-शीर्षक सहित
बहुत अच्छी कविता