“ताजी हरी सब्जी ले लो”
रोज की तरह सब्जी बेचने वाली मीना की आवाज़ अपने नियत वक्त पर मोहल्ले में गूँज उठी।
नन्ही इशा झट से दरवाजे की ओर दौड़ पड़ी और मीना को रोकते हुए बोली- सब्जी वाली चाची रुकिये, रुकिये।
इशा की माँ अनु ने मीना को जाने का इशारा करते हुए कहा- अरे हमें कुछ नहीं लेना जाओ तुम।
मीना कातरता से बोली- मेमसाब, आज घूमते-घूमते इतनी देर हो गयी लेकिन कुछ नहीं बिका। थोड़ी ही सब्जी लेकर बिटिया के हाथ से बोहनी करवा दीजिये।
हाँ-हाँ मैं अपने हाथ से बोहनी करूँगी- चहकती हुई इशा बोली।
थोड़ी सी सब्जी लेकर अनु ने इशा के हाथों मीना को पैसे दिलवा दिये।
अगले दिन फिर अपने नियत वक्त पर सब्जी लेकर मीना मोहल्ले में आयी और सबसे पहले इशा के घर पहुँची।
अनु दरवाजे पर ही थी।
उसने अनु से कहा- मेमसाब बिटिया के हाथ बड़े ही शुभ है। कल उसके बोहनी करते ही थोड़ी देर में हमारी सारी सब्जी बिक गयी। अब तो हम रोज बिटिया से ही बोहनी करवाएंगे चाहे एक रुपये की ही सही।
मीना की बात सुनकर अनु मुस्कुरा उठी।
कुछ सब्जियां लेकर उसने इशा के हाथों से बोहनी करवा दी।
अब ये रोज का क्रम बन चला था।
साल दर साल गुजरते रहे। अब इशा बारहवीं की छात्रा थी।
उम्र के असर से मीना का आना भी कम हो चला था, लेकिन जब भी वो आती सबसे पहले इशा के घर ही पहुँचती।
आज छः सालों के बाद अपनी पढ़ाई पूरी करके इशा अपने घर, अपने शहर वापस लौटी थी।
सुबह-सुबह अनु के साथ सैर पर जाते हुए सब्जी बेचने वालों को देखकर इशा ने अनु से मीना के बारे में पूछा।
अनु ने कहा- वो तो कई सालों से नहीं आयी। अब बुढ़ापे में भला कहाँ संभव है घर-घर जाकर सब्जी बेचना।
इशा उदास आवाज़ में बोली- काश मेरे पास उनके घर का पता होता। ना जाने क्यों एक बार देखने की इच्छा है उन्हें।
फिर मन ही मन कुछ सोचकर इशा हर सब्जी वाले से मीना के बारे में पूछने लगी। आखिरकार एक सब्जी वाले से उसे मीना के घर का पता मिल गया।
वो बचपन के दिनों को याद करके मुस्कुराती हुई मीना के घर की तरफ चल दी।
अपने दरवाजे पर सब्जी की टोकरी लिए वृद्धा मीना बैठी थी और धीरे-धीरे आवाज़ लगा रही थी- सब्जी ले लो।
लेकिन कोई भी उसके पास नहीं ठहर रहा था।
अचानक इशा को अपने सामने देखकर मीना बोली- बिटिया तुम ही इस बुढ़िया से कुछ ले लो।
उसकी हालत देखकर इशा का मन भर आया।
उसने कहा- चाची मैं कुछ नहीं सारी सब्जी लूँगी आज। मुझसे बोहनी करवाओगी ना?
अब मीना ने ध्यान से इशा को देखा और उसे पहचानते हुए रो पड़ी।
उसके आँसू पोंछते हुए इशा बोली- नहीं, नहीं रोना नहीं।
मीना ने इशा को बताया- ना जाने किस रहस्यमयी बीमारी से अचानक ही उसके एकलौते बेटे की कुछ सालों पहले मृत्यु हो गयी।
जैसे-तैसे वो मंडी से थोड़ी सब्जियां ले आती है बेचने के लिए। कभी बिकती है कभी नहीं। घर-घर जाकर बेचने की अब शक्ति कहाँ रही बिटिया- कहती हुई मीना उदास हो गयी।
इशा ने कुछ सोचा और मीना से सब्जियां लेकर अपने घर पहुँचते ही मोहल्ले के अपने कुछ दोस्तों को बुलाया।
सबसे विचार-विमर्श करके उसने दो दिनों के अंदर अपने ही मोहल्ले में एक छोटी सी जगह के साथ-साथ मंडी से सब्जियां लाने के लिए एक किराये की गाड़ी और एक सहायक की व्यवस्था कर दी।
साथ ही मोहल्ले वालों से अनुरोध किया कि वो मीना की दुकान से सब्जी खरीदें।
सबने इशा की बात सुनकर कहा- अगर हर तरह की ताजी सब्जियां हमें यहाँ मिल जाये तो हमें कोई ऐतराज नहीं।
इशा की खुशी का ठिकाना नहीं था।
सब्जी की दुकान पर हर प्रकार की ताजा सब्जियां सजाकर वो मीना को लेने चल दी।
मीना सब्जी की दुकान देखकर चौंक गयी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ये दुकान उसकी थी।
उसकी आँखों से लगातार आँसू बहते जा रहे थे।
इशा के सर पर हाथ रखते हुए वो कह रही थी- ना जाने किस पुण्य का फल बनकर तू आयी है। ईश्वर करे वो पुण्य मुझसे हर जन्म में हो।
मीना के आँसू पोंछते हुए इशा टोकरी में अपनी पसंद की सब्जी डालते हुए बोली- चाची अब इन कीमती आँसुओं को मत बहाओ और जल्दी से बिटिया के हाथों बोहनी करा लो। देखो सब लोग सब्जियां खरीदने का इंतजार कर रहे है।
हाँ-हाँ बिटिया जरूर, कहते हुए सब्जी तौलती मीना के होंठो पर अब पुरानी मुस्कान वापस आ चुकी थी, और उसे मुस्कुराते देखकर इशा का मन संतोष से खिल उठा था।
#शिखा श्रीवास्तव
परिचय :
नाम- शिखा श्रीवास्तव
साहित्यिक उपनाम- शिखा अनुराग
वर्तमान रांची
राज्य- झारखंड
शहर- रांची
शिक्षा- स्नातक(प्रतिष्ठा) समाजशास्त्र में
कार्यक्षेत्र- स्वयं का व्यवसाय अनुशी कमर्शियल
विधा – गद्य एवं पद्य
लेखन का उद्देश्य-
है उद्देश्य यही मेरे लेखन का
की बनाकर कलम को
अपनी ताकत
दूँ छोटा सा योगदान,
हमारे देश और समाज में
आये जिससे बदलाव सार्थक।
मिटे कुरीतियां मिटे द्वेष,
फैले मोहब्बत का संदेश।
लिखूँ कुछ ऐसा की उसे पढ़कर
आये मुस्कान किसी उदास लब पर,
चाहती हूँ रचूँ कुछ ऐसा
खो चुकी हो उम्मीदें जिसकी उसे
मिलेे एक उम्मीद नयी उसे पढ़कर।
है बस यही उद्देश्य मेरे लेखन का!!