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मन में कुछ ठाने,
झोला,झंडी ताने,
कपड़े वही पुराने,
चला जा रहा कमाने!!
परिवार की तमाम ख्वाहिशो को,
जिम्मेदारियों से खुद को बांधे,
चला जा रहा कमाने!
कपड़े नही ढंग के तन में,
परेशानी हैं घर की सामने,
जाने को मन बिल्कुल ना माने,
फिर भी,
चला जा रहा कमाने!!
घर,परिवार,देश से दूर,
बीमार माँ-बाप से दूर,
प्यारे पत्नी बच्चों से दूर,
दिल बेक़रार और परेशान,
गरीबी,बेरोजगारी से हारे,
चला जा रहा कमाने!!
गरीबी में नही दिन गुजरता,
नही हैं, घर में कुछ खाने को,
चला जा रहा कमाने!!
कोई ना कोई आये दिन बीमार,
पैसे नही दवा कराने को,
जितना कमाये,उससे ज्यादा खर्च,
हो जाते खूब परेशान,
चला जा रहा कमाने!!
कुंठित,व्यथित मन में सोचे,
गर होता यंहा कुछ कमाने को,
अगर सरकार करती कोई इंतज़ाम,
होती फैक्ट्री,मिल या रोजगार,
ना जाना पड़ता घर परिवार से दूर,
यंही पर कुछ कमाते!
लेकिन अब तो हैं, मज़बूरी,
मन हो मायूस या कि हो उदास,
खातिर अपने परिवार को पालने,
चला जा रहा कमाने!!
परिचय :
नाम-. मो.आकिब जावेद
साहित्यिक उपनाम-आकिब
वर्तमान पता-बाँदा उत्तर प्रदेश
राज्य-उत्तर प्रदेश
शहर-बाँदा
शिक्षा-BCA,MA,BTC
कार्यक्षेत्र-शिक्षक,सामाजिक कार्यकर्ता,ब्लॉगर,कवि,लेखक
विधा -कविता,श्रंगार रस,मुक्तक,ग़ज़ल,हाइकु, लघु कहानी
लेखन का उद्देश्य-समाज में अपनी बात को रचनाओं के माध्यम से रखना
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