नारी नहीं अब अबला ,
उसकी शक्ति दिखाना है ।
कहने और सुनने का ,
यह रिश्ता पुराना है ।
पढ़ी-लिखी होने पर भी.
पुरुषों से कम आंकी जाती ।
दहेज के कारण आज भी,
भ्रूण हत्या की जाती ।
आंखों में आंसू लेकर,
औरों को खुशियां देती।
त्याग दया की देवी ,
पल-पल जीती मरती।
हर क्षेत्र में आज नारी,
निकली है नर से आगे।
घर हो या बाहर अपनी,
जिम्मेदारी पूरी संभाले।
बेटी बनी और बहना,
बहू बनी फिर वह मां ।
चुप चुप सहा उसने ,
किसी से कुछ ना कहा।
नारी निकली घर से ,
पहुंची है संसद तक।
चौंके चूल्हेको छोड़,
पहुंची है अंतरिक्ष तक।
आंसुओं के मोतियों को,
व्यर्थ में ना गंवाना है ।
जमीन पर रहकर ही ,
आकाश को पाना है ।
अत्याचार की शिला को,
अब हमको ही हटाना है।
महिला दिवस है आज ,
कुछ हमको दिखाना है।
#आशा जाकड़
परिचय: लेखिका आशा जाकड़ शिकोहाबाद से ताल्लुक रखती हैं और कार्यक्षेत्र इन्दौर(म.प्र.)है। बतौर लेखिका आपको प्रादेशिक सरल अलंकरण,माहेश्वरी सम्मान रंजन कलश सहित साहित्य मणि श्री(बालाघाट),कृति कुसुम सम्मान इन्दौर,शब्द प्रवाह साहित्य सम्मान(उज्जैन),श्री महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान(शिलांग) और साहित्य रत्न सम्मान(जबलपुर)आदि मिले हैं। जन्म१९५१ में शिकोहाबाद (यू.पी.)में हुआ और एमए (समाजशास्त्र,हिन्दी)सहित बीएड भी किया है। 28 वर्ष तक इन्दौर में आपने अध्यापन कराया है। सेवानिवृत्ति के बाद काव्य संग्रह ‘राष्ट्र को नमन’, कहानी संग्रह ‘अनुत्तरित प्रश्न’ और ‘नए पंखों की उड़ान’ आपके नाम है।
बचपन से ही गीत,कविता,नाटक, कहानियां,गजल आदि के लेखन में आप सक्रिय हैं तो,काव्य गोष्ठियों और आकाशवाणी से भी पाठ करती हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ी हैं।