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आन पर मिटना जब जब हुआ होगा,
सबकी आँखों से आँसू तब बहा होगा।
ज्वालाओं में झोंक देना खुद ही खुद को,
इतना भी आसां तो नहीं हुआ होगा।
जिंदगी तो बहुत ही भाती है सबको ही,
उसको ही लुटाना भला कैसे हुआ होगा।
कैसे पापी दुराचारी थे वे नीच नराधम,
जिनके कारण ही ये सब-कुछ हुआ होगा।
लड़ते तो लड़ते पुरुषों से वीरों की तरह,
नारियों पर जबर्दस्ती तो नहीं हुआ होता।
कोई बीमार,कोई नवजात शिशुओं की मां,
इतना पत्थर दिल कोई कैसे हुआ होगा।
माँ-बहन-बेटी सभी उनके यहाँ भी होंगी,
पराई नारी को विवश कैसे किया होगा।
मजहब अलग बेशक हो किसी का दोस्त,
मानवता से कैसे मन अलग हुआ होगा।
जन्नत के तो काबिल वे हरगिज़ ही थे नहीं,
उनको तो जहन्नुम भी नसीब न हुआ होगा।
सीता है,सावित्री है,जननी जग की नारी ही,
कैसे उसी के दामन को छूना भी सोचा होगा।
जौहर था कोई खिलौना नहीं था,जो खेल लें,
शत-शत नमन उन्हें जिन्होंने ऐसा किया होगा॥
#डॉ.सरला सिंह
परिचय : डॉ.सरला सिंह का जन्म सुल्तानपुर (उ.प्र.) में हुआ है पर कर्म स्थान दिल्ली है।इलाहबाद बोर्ड से मैट्रिक और इंटर मीडिएट करने के बाद आपने बीए.,एमए.(हिन्दी-इलाहाबाद विवि) और बीएड (पूर्वांचल विवि, उ.प्र.) भी किया है। आप वर्तमान में वरिष्ठ अध्यापिका (हिन्दी) के तौर पर राजकीय उच्च मा.विद्यालय दिल्ली में हैं। 22 वर्षों से शिक्षण कार्य करने वाली डॉ.सरला सिंह लेखन कार्य में लगभग 1 वर्ष से ही हैं,पर 2 पुस्तकें प्रकाशित हो गई हैं। कविता व कहानी विधा में सक्रिय होने से देश भर के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख व कहानियां प्रकाशित होती हैं। काव्य संग्रह (जीवन-पथ),दो सांझा काव्य संग्रह(काव्य-कलश एवं नव काव्यांजलि) आदि पर कार्य जारी है। अनुराधा प्रकाशन(दिल्ली) द्वारा ‘साहित्य सम्मान’ से सम्मानित की जा चुकी हैं।
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