स्वभाषा:मोदी कुछ तो करें!

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vaidik
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अचानक हिंदी और भारतीय भाषाओं की याद आई,यह जानकर मेरा हृदय प्रसन्नता से भर गया। हमारे महान वैज्ञानिक प्रो. सत्येंद्रनाथ बोस की १२५ वीं जन्म-गांठ पर बोलते हुए मोदी ने विज्ञान और स्वभाषा के संबंधों पर अपने विचार व्यक्त किए। ऐसे विचार मेरी याद में आज तक किसी प्रधानमंत्री ने व्यक्त नहीं किए। प्रधानमंत्री के मुख से ये विचार निकले हैं, इसलिए अब इन्हें उनके ही माना जाएगा,चाहे फिर ये मेरे या आपके या किसी भाषण लिखनेवाले अधिकारी के ही क्यों न हों ?
मोदी ने कहा कि विज्ञान की पढ़ाई और अनुसंधान यदि भारतीय भाषाओं में हो तो विज्ञान जनता से जुड़ेगा। नौजवानों में लोकप्रिय होगा। उसका फायदा आम जनता को ज्यादा मिलेगा। वैज्ञानिक लोग यदि अपने मूल ज्ञान का प्रयोग आम आदमी की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए करें तो उनकी पूछ बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि सत्येन बोस विज्ञान को भारतीय भाषाओं के माध्यम से पढ़ाने के पक्षधर थे। उन्होंने बांग्ला भाषा में एक विज्ञान पत्रिका भी प्रकाशित की थी।
ऐसे उत्तम विचार व्यक्त करने के लिए मैं मोदी की तारीफ पहले ही कर चुका हूं,लेकिन मैं पूछता हूं कि क्या मोदी को हमने इसीलिए प्रधानमंत्री बनाया है ? ऐसे और इससे भी अच्छे विचार तो कोई भी व्यक्त कर सकता है लेकिन किसी प्रधानमंत्री या सरकार के मुखिया से क्या सिर्फ यही उम्मीद की जाती है ? वह भाषण जरुर झाड़े या उपदेश जरुर करे,लेकिन इसके साथ-साथ हम उससे कुछ कर दिखाने की आशा भी करते हैं।
मोदी यह बताएं कि,पिछले साढ़े तीन साल में मोदी ने देश में एक भी ऐसा महाविद्यालय स्थापित किया,जो चिकित्सा,अभियांत्रिकी,विज्ञान और कानून आदि की उच्च शिक्षा भारतीय भाषाओं के माध्यम से देता हो ? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना होगा कि,उसका श्रेष्ठ स्वयंसेवक प्रधानमंत्री की कुर्सी में बैठकर भी इतना लाचार क्यों है ? वह इस दिशा में शून्य क्यों है ? अंग्रेजी की गुलामी करनेवाले अन्य प्रधानमंत्रियों से वह अलग और बेहतर साबित क्यों नहीं हो रहा है ?

                            #डॉ.वेद प्रताप वैदिक

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।