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नैतिकता क्या है?,सबसे पहले तो यह समझ लिया जाए। वास्तव में नैतिकता की परिभाषा ही बदल चुकी है। पुराने समय में जो भी नैतिक मूल्य थे,प्रायः देखने में आता है कि वे अब पूरी तरह से खो गए हैं। फिर भी यदा-कदा दिख जाते हैं तो थोड़ी उम्मीद जाग जाती है।नैतिकता के मूल गुण-बड़ों का आदर करना,झूठ नहीं बोलना,दो लोगों के बीच में नहीं बोलना,दया और सहानुभूति की भावना रखना,स्त्री की मान-मर्यादा की रक्षा करना,पर स्त्री या पुरुष के लिए गलत सोच नहीं रखना,घर के बुजुर्गों को उचित सम्मान मिलना,प्राणी मात्र से प्रेम करना,दूसरे की वस्तु पर अपना अधिकार नहीं मानना,घर को स्वच्छ रखना,घर में आए मेहमान को यथायोग्य सम्मान देना, समाज और देश के प्रति जागरूक रहना और उसकी रक्षा करने के लिए वचनबद्ध होना,आचार्य और गुरु का उचित मान सम्मान करना,आगे बढ़ने के लिए दूसरे का अहित नहीं करना,अपने अधिकार और कर्तव्य का निर्वहन करना,सभी के साथ तालमेल बिठाकर काम करना आदि हैं।
अब यदि कोई सच्चाई से मुंह नहीं मोड़े और आंकलन करे तो हम पाएंगे कि आज उपरोक्त सभी बातों में से बहुत कम ही की पालना होती है। इन सभी नैतिक मूल्यों के पतन का कारण-एकल परिवार, पैसे का मोह,भौतिकता का मोह,बच्चों की परवरिश को लेकर अतिउत्साहित होना तथा बड़ों की कही बात को नज़रंदाज़ करना है। कुल मिलाकर यह भी कहा जा सकता है कि,अत्यधिक भागम-भाग में नैतिक मूल्यों का पालन करना मनुष्य के लिए गौण हो गया है। विज्ञान की तरक्की में ही इंसान अपनी तरक्की समझ रहा है। फलस्वरूप अत्याचार,अनाचार,दुराचार,आतंकवाद और नक्सलवाद आदि बढ़ा है।
भारत,देवभूमि है,नैतिकता की खान है। मनीषियों और संतों-महापुरुषों का जन्मस्थान है। नैतिक मूल्यों के पालना में दुनिया के सामने उदाहरण रहा है,पर आज इस देश में भी घोर नैतिक पतन हो रहा है। पाश्चात्य संस्कृति ने पैर पसार लिए हैं,अंधकारमय भविष्य हो गया है। यदि,सच में ही हम इस देश को शक्तिशाली बनाना चाहते हैं तो,फिर से नैतिक मूल्यों को स्थापित करना होगा। इसे सिखाने की जरूरत न पड़े,बल्कि स्वत: ही दृष्टिगोचर हो। इसके लिए बहुत प्रयास करने होंगे।
अभी भी बहुत संभावनाएं हैं,हमारा हर कदम ऐसा हो,जो अनीति पर सीधा प्रहार करे,और सार्थक सिद्ध हो।
सर्वप्रथम माता-पिता को संस्कारित होना होगा,नैतिक शिक्षा का महत्व बच्चों को शाला-महाविद्यालय और घर पर भी सिखाना होगा। देश के प्रति सम्मान जागृत करना होगा,शिक्षा पद्धति में बदलाव लाना होगा,बच्चों को सिर्फ किताबी ज्ञान की बजाय प्रायोगिक ज्ञान देना होगा,स्वावलंबन की शिक्षा पद्धति विकसित करनी होगी,संस्कृति और सभ्यता की रक्षा करनी होगी,इतिहास के गौरवशाली किस्से सुनाने होंगे और सकारात्मक सोच भी लानी होगी। साथ ही जीवन जीने की कला सीखनी होगी एवं अगणित कुत्साओं और कुंठाओं से बाहर निकलना होगा।
याद रखिए कि,सही दिशा में किया गया छोटा-सा प्रयास भी तीव्र विचारधारा के कारण आगे बढ़ने में मदद करेगा।नैतिकता व्यक्ति के आचरण में परिलक्षित होनी चाहिए,तभी सारे प्रयास सार्थक होंगे।
#पिंकी परुथी ‘अनामिका’
परिचय: पिंकी परुथी ‘अनामिका’ राजस्थान राज्य के शहर बारां में रहती हैं। आपने उज्जैन से इलेक्ट्रिकल में बी.ई.की शिक्षा ली है। ४७ वर्षीय श्रीमति परुथी का जन्म स्थान उज्जैन ही है। गृहिणी हैं और गीत,गज़ल,भक्ति गीत सहित कविता,छंद,बाल कविता आदि लिखती हैं। आपकी रचनाएँ बारां और भोपाल में अक्सर प्रकाशित होती रहती हैं। पिंकी परुथी ने १९९२ में विवाह के बाद दिल्ली में कुछ समय व्याख्याता के रुप में नौकरी भी की है। बचपन से ही कलात्मक रुचियां होने से कला,संगीत, नृत्य,नाटक तथा निबंध लेखन आदि स्पर्धाओं में भाग लेकर पुरस्कृत होती रही हैं। दोनों बच्चों के पढ़ाई के लिए बाहर जाने के बाद सालभर पहले एक मित्र के कहने पर लिखना शुरु किया था,जो जारी है। लगभग 100 से ज्यादा कविताएं लिखी हैं। आपकी रचनाओं में आध्यात्म,ईश्वर भक्ति,नारी शक्ति साहस,धनात्मक-दृष्टिकोण शामिल हैं। कभी-कभी आसपास के वातावरण, किसी की परेशानी,प्रकृति और त्योहारों को भी लेखनी से छूती हैं।
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