बेटियों की स्थिति देखकर,
आज हमें रोना आता है।
क्योंकि जन्म देने वाली माँ,
राखी बांधने वाली बहन
प्यार करने वाली प्रेयसी,
या हमें खुद से ज्यादा,
प्यार करने वाली पत्नी
सबकी सब बेटियां हैं,
चाहे हमारी या आपकी।
हमने और हमारी संस्कृति ने,
जिसके लिए कहा है कि
जहाँ नारी की पूजा होती है,
वहाँ देवता निवास करते हैं।
फिर भी न जाने क्यों ?
हमारी सभी तकलीफ को,
सहन करने की सहनशीलता…
रखने वाली बेटियों के साथ,
धरती से अम्बर तक
परचम लहराने वाली,
हमारी बेटियों के साथ…
हम आज भी असहज हैं,
हम आज भी लाचार हैं
या उन्हें ऐसा समझने वाले,
हम और हमारा समाज
शायद अपंग और बेकार हैं।
नहीं तो क्यों ?
आज भी हमारी बेटियाँ,
अपने ही घर में,
घरेलू हिंसा की,
शिकार होती हैं।
क्यों आज भी हमने,
उन्हें समानता के अधिकार से
उपेक्षित-वंचित रखा है,
या नहीं दे पा रहे हैं।
कहीं ऐसा तो नहीं,
कि हमें उनकी उपस्थिति
और जग जीतने के,
उनके जोश-खरोश से,
भीतर से डर लग रहा हैl
कि हमारी बनाई सत्ता
हाथ से न निकल जाए,
या इस बात का डर है,
कि,स्त्रियां अधिकार में
यदि आ ही जाए तो,
खुद पर हुए अत्याचार का…
हमसे बदला लेंगी
सभी लोग निश्चिन्त रहिए,
ऐसा कुछ भी नहीं होगा।
क्योंकि माँ की ममता,
ऐसी है कि वो हमारे लिए
हमारे दिए हर एक कष्ट,
अपने दिल से भुला जाती हैं
और फिर से हमें माफ कर,
अपने गले लगा जाती हैं…
क्योंकि वो ममतामयी माँ,
करुणामयी माँ होती हैll
#केशव कुमार मिश्रा
परिचय: युवा कवि केशव के रुप में केशव कुमार मिश्रा बिहार के सिंगिया गोठ(जिला मधुबनी)में रहते हैं। आपका दरभंगा में अस्थाई निवास है। आप पेशे से अधिवक्ता हैं।