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बेटी माँ के कलेजे का टुकड़ा,
बार-बार ये सुनती रहती हूँ मैं
उसी कलेजे के टुकड़े को तू,
मैया काहे को मिटा देती है।
मैं भी तो तेरा ही अंश हूँ माता,
फिर क्यों मैं पराई लगती हूँ।
भैया को कहती हो कुलचिराग,
मैं क्या अँधियारा करती हूँ।
दो कुल का भार वहन करती हूँ,
दोनों कुल का मैं मान बढ़ाती हूँ।
तब भी मैं पूरा मान नहीं पाती हूँ,
मैं पूरा सम्मान नहीं क्यों पाती हूँ।
तू भी तो धरा तक न आने देती है,
जन्म से पूर्व ही दफन कर देती है।
बोलो क्या अपराध हुआ मुझसे है,
समाज भाई समान कहाँ मानता।
हर क्षेत्र में मैं बस पिसती रहती हूँ,
सबकी नजरों में खटकती रहती हूँ।
बेटी होना अभिशाप समान लगता,
हमें जब माँ मान न पूरा मिलता है।
समाज बने ये पुरुष प्रधान भले ही,
हमारा सम्मान हमें लौटा दे बस ये।
बनी बेटियाँ वस्तु तुल्य क्यों माता,
कहीं थोड़ा-सा हाथ तेरा भी तो है।
सदियों से चली आ रही है कहानी,
बस अब तू राह बदल दे कुछ अपनी।
#डॉ.सरला सिंह
परिचय : डॉ.सरला सिंह का जन्म सुल्तानपुर (उ.प्र.) में हुआ है पर कर्म स्थान दिल्ली है।इलाहबाद बोर्ड से मैट्रिक और इंटर मीडिएट करने के बाद आपने बीए.,एमए.(हिन्दी-इलाहाबाद विवि) और बीएड (पूर्वांचल विवि, उ.प्र.) भी किया है। आप वर्तमान में वरिष्ठ अध्यापिका (हिन्दी) के तौर पर राजकीय उच्च मा.विद्यालय दिल्ली में हैं। 22 वर्षों से शिक्षण कार्य करने वाली डॉ.सरला सिंह लेखन कार्य में लगभग 1 वर्ष से ही हैं,पर 2 पुस्तकें प्रकाशित हो गई हैं। कविता व कहानी विधा में सक्रिय होने से देश भर के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख व कहानियां प्रकाशित होती हैं। काव्य संग्रह (जीवन-पथ),दो सांझा काव्य संग्रह(काव्य-कलश एवं नव काव्यांजलि) आदि पर कार्य जारी है। अनुराधा प्रकाशन(दिल्ली) द्वारा ‘साहित्य सम्मान’ से सम्मानित की जा चुकी हैं।
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