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रमेश बाबू ने खिड़की से पानी वाले से पानी लेकर पचास रूपए दिए व वापस तीस रूपए छुट्टे का इंतजार रहे थे कि, अचानक सिग्नल हो गया, ट्रेन चल दी। पानी वाला बाबूजी…. बाबूजी… चिल्लाता रहा,पर बाबू ये तो ट्रेन है सिग्नल के आगे शायद ही किसी की सुनती है। वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सका। ट्रेन की सबसे पीछे वाली बोगी में बना क्राॅस का चिन्ह उसे चिढ़ाते हुए पास कर गया। उदास होकर उसने अपना फोन निकाला और कुछ बातें की।
थोड़ी देर बाद उसी ट्रेन में भीड़ को चीरते हुए, मुँह टेढ़ा करके बोले जाने वाली एक आवाज सुनाई दी-‘खाइए लिट्टी-चोखा, दस के छः, दस के छः, खाइए बिहारी खाना दस……।’
उसकी अजीब आवाज के कारण खचाखच भीड़ उसी की तरफ देख रही थी। तभी उस वेंडर ने लोगों से हाथ जोड़कर कहा- ‘बाबूजी, पिछले स्टेशन पर मेरे एक साथी वेंडर का आपमें से किसी यात्री के यहाँ बीस रूपया छूट गया है, कृपा करके दे दीजिए..गरीब आदमी है बेचारा’, उसने दोहराया। सारे लोगों ने अपने-अपने दूसरी तरफ फेर लिए, मानो उनके सामने कोई भिखारी आ गया हो। कुछ यात्रियों ने कह दिया-न ,न.. हम लोग ऐसे आदमी नहीं हैं, बीस रूपया से कोई राजा नहीं हो जाएगा। दूसरी बोगी में देखो।
अचानक रमेश बाबू बुदबुदाए- ‘तुम्हारा बीस रूपया छूट गया, तो लेने आ गए ,और मेरा उसी स्टेशन पर तीस रूपया छूट गया तो कोई पूछने तक नहीं आया।’
वेंडर मोहन ने तीस रूपए उनके हाथ में देते हुए कहा- ‘बाबूजी ये पैसे आपके हैं। मेरे साथी ने मुझे फोन करके बताया था,अगर मैं सीधे-सीधे पूछता तो सही व्यक्ति का पता लगाना इस ईमानदारी के दौर में मेरे बस का नहीं था।’
यात्रियों की आँखें फटी रह गई, और फिर से वही आवाज गूंजने लगी… ‘खाइए लिट्टी-चोखा…बिहार का खाना….लिट्टी-चोखा।’
#नवीन कुमार साह
परिचय : नवीन कुमार साह बिहार राज्य के समस्तीपुर स्थित ग्राम नरघोघी में रहते हैं। श्री साह की जन्मतिथि १६ अप्रैल १९९४ है। दरभंगा (बिहार) से २०१५ में स्नातक (प्रतिष्ठा) की उपाधि प्राप्त करने के साथ ही अभी बी.एड. जारी है। अध्यापन ही आपका पेशा है। वर्तमान सृजन (द्वितीय) विमोचनाधीन है। कई पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हुआ है। आप छंद, लघुकथा व छंदमुक्त कविताएं लिखते हैं।
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