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जमाने के कई रंग देखे हैं हमने,
कभी तपती धूप,कभी बारिश में उजाले देखे हैं हमने।
जो इंसा सब कुछ खोने को तैयार है हमारे लिए,
उसी के काले निवाले देखें हैं हमने।
जब से होश संभाला है,धरती पर रेंगता है इंसान,
उसी इंसान को उड़ती हवाओं में देखा है हमने।
सोचता हूँ क्या धरोहर है खुदा की?जो रमती है कण-कण में,
उसी पत्थर को टूटते सड़कों पर देखा है हमने।
बहते पानी का रुख बदल दूँगा!,बड़े गुरूर से कहता है व्यक्ति,
उसी पानी में डूबते इंसा को देखा है हमने।
अब सोचकर देख ए अनमोल प्राणी,तेरी बातों की औकात क्या थी?
तेरी चिता पर अंगारों को सुलगते देखा है हमने।
मगरूरियत के वश में वशीभूत है या नशा है तुझे शाह-ए-शरीर का,
उन्हीं वेदांतों को बिलखते शव पर देखा है हमने।
न दौलत,न शौहरत,न महल है तेरा, बसेरे के लिए।
एक ही घाट पर फकीरों के साथ तुझे देखा है हमने।
#जीतपाल सिंह यादव ‘आर्यवर्त’
परिचय: जीतपाल सिंह यादव ‘आर्यवर्त’ की जन्मतिथि-८ जुलाई १९९३ एवं जन्म स्थान-बंजरपुरी पवाॅसा सम्भल (उत्तर प्रदेश) है। शिक्षा-एमए(राजनीति शास्त्र)और कार्यक्षेत्र-अध्यापन और अध्ययन है। सामाजिक क्षेत्र में आपने गरीबों के लिए संघर्ष की दिशा में एक समिति बना रखी है। देवनागिरी लेखन के साथ ही गायन भी करते हैं। लिखने की प्रेरणा समाज से ही ली है।
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