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भीगी आंखें , भीगी रातें
धुंधली यादें, बिसरी बातें
बाबूजी के हाथ पली थी
आंगन की वो शाख हरी थी
अखबारों के संग बैठक में
चर्चा करते बाबूजी
और कभी हाथों से आंगन
सींचा करते बाबूजी
गीला आंगन, गीली रातें
धुंधली यादें, बिसरी बातें
कपड़े धोकर छत के अम्मा
चक्कर चार लगा आती थी
उधर रसोई से अम्मा के
खाने की खुशबू आती थी
पूजा घर में ‘महादेव’ को
अम्मा का चंदन भाता था
गीला चंदन गीली आंखें
धुंधली यादें, बिसरी बातें
#तृप्ति शाह
इन्दौर, मध्यप्रदेश
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