याद आता है वो नीम का पेड़
ठंडी हवा के झोंके
निंबोलियों की पट-पट
ठंडे पानी से भीगा गमछा
कभी सिर, कभी पैरों को ठंडक देता
गर्मी के तेवर ठंडे करता
नाना का रेडियो
कान के पास बजता
विविध भारती का संगीत
फ़रमाइशों की झमाझम
कालिदास के मेघदूत सम
प्रियतमा के नाम संदेश
पहुँच जाते प्रीत पगे से
पगलाई सी सुनती
मेघों को ढाढी जान
मरूस्थल की बाढ़ में मारू
ढोला को टेरती-ढूंढती
टीलों-टीलों कृष्ण-मृग सम
दौड़ लगाती अतृप्त-आतप
कस्तूरी-प्रेम की मादक-ज्वाला
भभक रही बालू सी दाहक
धूप की वर्षा टीलों पर लपटों सी
सुनसान समन्दर विराना
ढ़ोला का जाप करती मारू
डूबती-उतराती मन की नाव पर
उडने लगती जादुई चटाई पर
मिलने को आतुर
स्वप्न-संगी से
स्वप्न टूटा,
दोपहर का चढ़ाव
नीम की पत्तियों में सरसराहट
हवा के मीठे अहसास
रेडियो सुनाने लगा
ले तो आये हो हमें सपनों के गाँव में….
प्यार की छाँव में बिठाये रखना…..।।
डॉ. रेखा शेखावत
सहायक प्रोफ़ेसर- हिंदी
राजकीय स्नातकोत्तर, महाविद्यालय, सतनाली, महेंद्रगढ़, हरियाणा।