तोड़ दो अब चुप्पी ,
तुम कुछ तो बोल दो।
खजाने सारे मन्दिरों के,
अब तो खोल दो।
किया था श्रद्धा भाव से,
भक्तों ने जो अर्पण।
अरे मंदिर के ठेकेदारों,
कुछ तुम भी करो अर्पण।
मिलता है पुण्य दान से,
ये तुम ही बोलते हो।
तिजोरियाँ फिर अपनी,
क्यों ना खोलते हो?
कमा लो थोड़ा पुण्य भी,
इस जग से जाते जाते।
जाएँगे ऊपर जाँचे ,
तेरे भी सारे खाते।
ना तुम्हारा माँगते कुछ,
बस गरीबों का ही दे दो।
लिया था प्रभु के नाम पर,
प्रभु के नाम पर ही दे दो।
मानवता दिखाओ थोड़ी,
लालच को मारो गोली।
पछताओगे बहुत तुम,
जो नीयत तुम्हारी डोली।
ये है पुकार जग की,
ये समय की माँग है।
भक्तों के दान से अब,
बचे भक्तों की जान है।
स्वरचित
सपना (सo अo)
प्राoविo-उजीतीपुर
विoखo-भाग्यनगर
जनपद-औरैया