ईश्वर कृपा का विशेष फल मानव जीवन

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अनेकों जन्म के पुण्यों का फल यह मानव शरीर हैं जो हमें मिला है, ईश्वर की बनाई सबसे सुंदर कृत्ती,सबसे सुंदर रचना,सबसे सुंदर सर्जन है यह मानव शरीर , और इसकी व्यवस्था जिसको पाकर आप हम सभी ही मानव सम्पूर्ण जगत का आनंद ले सकते है,इसी शरीर के माध्यम से ईश्वर को पा सकते है,प्रसन्न कर सकते है, उस तक पहुंचने के सारे उपायों को सिद्ध कर सकते है,
खाना पीना,सुनना चिल्लाना,दौड़ना भटकना,अपनी संख्या को बड़ाना, लडना झगड़ना,मार काट यह पशुओं में भी होता ही है लेकिन ईश्वर ने इस सारी व्यवस्था से ऊपर उठकर जो सुविधा साधन ओर शक्ति मानव को दी है वो प्रमाणित है के ईश्वर की इच्छा यही रही होगी के मेरे बनाए इस संसार में इंसान को में सबसे अच्छे स्वरूप में ,सबसे अच्छे महोल में ओर सबसे अच्छे रूप में देखू,

तभी उसने हमें बोलने , गाने ,हसने,नाचने, समझने , समझाने,खेल ,संगीत,संगीत, साहित्य,काव्य,अध्यात्म , जप , तप,ध्यान, योग,सहित बुद्धि का वो भंडार दिया है जिसको उपयोग कर हम सम्पूर्ण जगत का हर विषय ,हर क्षेत्र हर उस आंनद को जी सकतें है जो अन्य प्राणी नहीं जी सकता और
मानव जीवन को जीने कि सम्पूर्ण कला को सीखने ओर सिखाने हेतु स्वयं ईश्वर भी समय समय पर मानव रूप लेकर धरती पर अवतरित हुआ ही है,अनेकों अनेकों अवतार हैं जो ईश्वर के ही अंश होकर मानव रूप धर कर आए है l जीवन के नियम,जीवन को जीने के साधन ,ओर जीवन को जीने कि व्यवस्था के साथ सब कुछ दिखाकर, सिखा कर समझ समझा कर गए है
इस मानव शरीर रूप में मिली
जिंदगी का हर एक पल कीमती है,अमूल्य है, इस हर एक पल में आपको ऐसा जीना है ऐसा कार्य करना है या करते रहना है जिससे ईश्वर खुश हो , किसी भी रूप में आप इस मानव शरीर रूपी सुख सुविधा से युक्त इस जीवन का सदुपयोग कर कर अपने ईश्वर के कृपा पात्र बन सकते है,उसकी प्रसन्नता के कारण बन सकते है
हमारा प्रभु आंनद में हमे देख सके, यही उसकी प्रसन्नता है
हम भक्ती से,भाव से,दान से, भजन से, पूजन से , हवन,अध्यात्म,परोपकार ,जनसेवा,,धन सेवा,,, याने ऐसे कार्य करे जिससे हमारा ईश्वर खुश हो ओर हमारे हिस्से में पुण्य आए, वो समस्त समस्त कार्य कर सकते है,,सम्पूर्ण शरीर ईश्वर की भक्ती में लगा रहे यही इस जीवन का उदेष्य हो,

मस्तिष्क में सदेव उसकी छवि बनी रहे
वैचारिक व्यवस्था सदेव उसकी बताई राह पर चलने की विचारधारा में डूबी रहे

आंखे सदेव उसी के दर्शन उसी का रूप हर और करे
मुख , जिव्हा उसी के नाम,भजन कीर्तन जप तप के लिए निरन्तर कार्यरत रहे
कंठ सदेव ही मंत्र उच्चारण करता रहे
हृदय सदेव ही भगवान का मंदिर बना रहे
हृदय स्थल पर केवल उसी की भक्ती की शक्ति का राज रहे,
स्वार्थ ओर लोभ इसके नजदीक भी नहीं आ सके
परोपकार,करुणा ओर प्रेम की जगमग जगमग ज्योति सदेव मन के आंगन में प्रज्वलित रहे प्रसन्नता से भरा हुआ मन ही ईश्वर की पसंद का स्थान होता है ओर जिस मन में ईश्वर विराजमान होता है वो मन समस्त विकारों से मुक्त होता है
कर सदेव ही मानव सेवा में, ईश्वर की इस व्यवस्था को सहयोग ओर सुरक्षित रखने हेतु तेयार रहे
पग सदेव ही ईश्वर के बनाए ओर बताए सद मार्ग ओर जगत कल्याण वाले रास्ते पर ही चले l
यह हम सभी करते रहे यही उद्देश्य है इस मानव शरीर के मिलने का
भजन,पूजन,दान,,सेवा,,लेना देना कामना,मदद सभी तरह से हर हममें से सभी अपने अपने हिसाब से कुछ ना कुछ ऐसा कार्य करता है जो अपने मन में बैठे ईश्वर को संतुष्टि पूर्वक सेवा पहुंचा सके I
इस समय काल में सब कुछ बन्द पड़ा है लेकिन आपकी ईश्वरीय शक्ति तो आपके अंदर ही है आपकी भक्ति की शक्ति तो आपके अंदर ही है,
इस शक्ति को आप लुप्त नहीं होने दे रोजाना मन से जाग्रत रखे यही समय है हमे जाग्रत होकर रहने का और मन के अंदर बेठे ईश्वर को उसके बताए नियमो का पालन कर खुश रखना ही है

यही भी एक कर्म ओर मार्ग है मानव जीवन को सफल करने का
ईश्वरीय शक्ति को खुश रखने के लिए आप अपने आप को प्रसन्न रखे,,

खुशियां लुटाने से कठिन होता है स्वयं खुश रहना
किसी को प्रसन्न रखने से ज्यादा कठिन है खुद को प्रसन्न रखना फिलहाल यह समय तो बड़ा कठिन है समझो परीक्षा का ही समय है इससे निपटने के लिए कठिन होना पड़ेगा,,,प्रसन्न रहना पड़ेगा

मुस्कुराते रहिए।

राजेश शर्मा
उज्जैन मप्र

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