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शीत ओस द्वय हारे,
पीत पुष्प देख भारे,
ताक रहे भृंग प्यारे,
कुसुम पलाश के।
चाह रखे मधु पिएँ,
कली संग फूल जिएँ,
फाग राग चाह लिए,
कामना हुलास के।
मर्त्य जीव चाह रहे,
सुखदा समीर बहे,
प्रीति रीति कर गहे,
संगिनी तलाश के।
रस हीन गंध हीन,
मानवी पलाश दीन,
मधुकर भाव छीन,
जिए सम लाश के।
बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
दौसा (राजस्थान)
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