“बस अब और नहीं”
सह लिया,सहना था जब।
नवउमंग से,बढ़ना है अब।
मंज़िल तक,कोई ठौर नहीं।
बस अब और नहीं।।
संचित ऊर्जा के,दोहन का।
समय सुनहरा,है जीवन का।
निराशा का कोई दौर नहीं।
बस अब और नहीं।।
जीवन संगीत है,मधुर ताल है।
लक्ष्य प्राप्य है,चाहे विशाल है।
सुनना विरोधियों का,शोर नहीं।
बस अब और नहीं।।
क्यों शोषित,रक्खा है जीवन को।
जकड़ा बेड़ियों में,स्वच्छन्द मन को।
लक्ष्य पर हो नज़र,कमज़ोरी पर गौर नहीं।
बस अब और नहीं।।
#शशांक दुबे
लेखक परिचय : शशांक दुबे पेशे से उप अभियंता (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना), छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश में पदस्थ है| साथ ही विगत वर्षों से कविता लेखन में भी सक्रिय है |