धोखा

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पुलवामा की धरती पर,
दुश्मन ने घिनौना कृत्य किया।
भारत माँ के जाबांजों पर,
पीठ पर खंज़र से वार किया।

दबे पाँव घुस आए भेड़िए,
हिन्दोस्तान की सीमा में।
धोखे और छलावे से,
मचा दी थी तबाही घर में।

साहस ना था कायरों को,
सीना तान कर लड़ने का।
षड्यंत्र रचा था गद्दारों ने,
छिप कर वार करने का।

अपने घर के जयचन्दों ने,
खूब निभाई गद्दारी।
दुश्मन को बता राज सभी,
खूब दिखाई होशियारी।

गोले ,बारूद के ढेरों से,
मौत का रास रचाया था।
जाबांजो के काफिले पर,
शत्रु ने क़हर बरसाया था,

अचानक हुआ धमाका ऐसा,
दहल गयी भारत माता।
भरोसे का फट गया कलेजा,
सहम गई थी मानवता।

कुछ भी समझ ना पाए थे ,
भारत माँ के रखवाले।
बंदूक उठा ना पाए अपनी,
मातृभूमि के मतवाले।

हमको ही हथियार बना कर,
दुश्मन ने जाल बिछाया।
जयचन्दों के बल पर उसने,
सुख चैन सभी का चुराया

किसी ने खो दीं संतानें,
किसी ने भाई खोए थे।
उजड़ गया सिंदूर किसी का,
किसी ने पापा खोए थे।

जाबांजो ने जान गवाईं,
गुलाबों में जब हम खोए थे।
देख निर्मम मंजर बेटों का,
माँ भारती के नैना रोए थे।

हमें नाज है वीरों तुम पर,
नमन है शत शत बार।
आएगी जब याद तुम्हारी,
अंतर्मन रोएगा हर बार।

स्वरचित
सपना (स. अ.)
जनपद- औरैया

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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