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काश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सबसे मजबूत क्या हो सकता है,
ये सामान्य ज्ञान का कोई प्रश्न तो नहीं है परन्तु मेरे मष्तिष्क में कौतूहल अवश्य पैदा करता हैंं। जानता हूँ आप में से कुछ अचकचा जाएंगे या फिर इसे मेरे दिमाग के
फितूर की संज्ञा दे देंगे,परन्तु दोनों चीजें वास्तविकता नहीं हैं। कल्पना कीजिए इस मजबूती का पता लगाने हेतु एक सर्वेक्षण कराया जाए और मुझे समबन्धित आयोग का अध्यक्ष बनाया जाए।
मै बिना एक पल की देरी किए निष्कर्ष दूंगा कि वो मजबूत चीज है ‘उम्मीद’। एक उम्मीद जो यहाँ के गरीब किसानों और आमजनों को है अपने माननीयों से। न जाने किस चीज से बनी है कि, टूटती ही नहीं है,और एक से टूटती है तो दूसरे से जुड़ जाती है। देखिए न,लखन के खेत में फसल खराब होने की कगार पर कड़ी है,पर उसे उम्मीद है कि, कृषि बीमा योजना के तहत पंजीकरण कराया है तो क्षतिपूर्ति अवश्य मिलेगी। जिन्होंने बीमा नहीं करवाया,उन्हें भी राज्य और केन्द्र सरकार से काफी उम्मीदें हैं। हो भी क्यों न!आखिरकार जब उनके नेता उनके गांव के इण्टर कॉलेज में रैली के लिए आए थे तो बोला था कि-किसानों को क्षतिपूर्ति मिलेगी और
इसके लिए विशेष कार्यक्रम भी बनाने की बात कही थी।वैसे ये उम्मीद शहर के उन जागरुक युवाओं के जेहन में भी कम नहीं है। उन्होंने भी मानबेला से लेकर बेनियाबाग़ तक की रैलियां देखी हैं,और अपने नेताओं को सुना भी है।
अब तो बाकायदा वो अपने हाथ में स्मार्ट फोन लिए माननीयों के एप्लीकेशन को इंस्टॉल कर खुश होते दिखते हैं..मानो एप्लीकेशन न हो कालिदास मार्ग या 7, रेस कोर्स का ड्राइंग रुम हो।
लीजिए,मैं भी एक उम्मीद कर ही लेता हूँ,शायद जल्द ही इन माननीयों का तथाकथित हनीमून पीरियड ख़त्म होगा और वो जनता को किए गए वायदों की कसौटी पर खरे उतरेंगे। तब तक के लिए उम्मीद के उस दिए को नमन,जिसने न जाने कितने अँधेरे घरों को नाउम्मीदी के अन्धकार से बचा रखा है। उम्मीद जीवन्त है,तभी देश जीवन्त है।
#स्वप्निल श्रीवास्तव
परिचय…युवा कलमकार के रुप में कवि स्वप्निल श्रीवास्तव कविता और पत्रकारिता दोनों में दखल रखते हैं। गोरखपुर से सटे देवरिया जिले में अवतरित हुए स्वप्निल आजकल देहरादून में अस्थाई प्रवास कर रहे हैं। एक तरफ श्रृंगार के मुक्तकों और गीतों में प्रेम का चित्रण करते हैं,तो ये दूसरी तरफ सियासत पर मुखर कटाक्ष भी करते हैं।
करियर की शुरुआत इंडियाज़ फर्स्ट फाउंडेशन स्कूल में मनोविज्ञान के व्याख्याता के तौर पर की और फ़िर अन्ना आंदोलन में नौकरी छोड़ दी थी। फिर पत्रकारिता में आ गए। विभिन्न मीडिया संस्थानों में प्रमुख पदों पर कार्य करने के पश्चात् वर्तमान में एक निजी टीवी चैनल में राजनीतिक शोध दल का हिस्सा हैं। यह अनाथालय व मिशन अन्नपूर्णा के माध्यम से सामाजिक सरोकार के मुद्दों पर भी कार्य कर रहे हैं। इसी भावना से अपने वेतन का 30 फीसद और साहित्यिक आय का 60 फीसद हिस्सा अनाथालय और किसान मंचों को दान करते हैं।
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