मत आना मेरी अर्थी में

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आंगन के बीचों बीच कौशल्या की मृत देह को रख दिया गया था । कर्नल रामसींग आंसू भरी आंखों से एकटक देख रहे थे । दूर महानगरों में रह रहे दोनों बच्चों को माॅ के निधन की सूचना दे दी गई थी । संभवतः वे कल तक ही यहां पहुंच पायेगें तब ही कौशल्या का अंतिम संस्कार होगा ऐसा कर्नल रामसींग चाहते थे । बड़े लाड़ से पले उनके बच्चे अपनी माॅ को अंतिम बार देख लें । वैसे भी बच्चे पिछले दो तीन सालों से आये भी नहीं थे । कौशल्या उनसे फोन पर बात करती रहती और आने का अनुरोध करती पर वे अपनी व्यस्तता के चलते आ भी नहीं पा रहे थे । तीज-त्यौहार में बच्चों की अनुपस्थिति कौशल्या को बहुत खलती । उसकी आंखों से दिन भर आंसू बहते रहते । ऐसा नहीं था कि रामसींग को बच्चों की याद न आती हो, आंसू तो वे भी बहाते थे पर ओट में रहकर ताकि कौशल्या न देख पाये वरना वह और उदास हो जाती । माता पिता के लिये उनके बच्चे ही तो घर संसार होते हैं । वे तो सेना की नौकरी में थे इसलिए बच्चों पर इतना ध्यान नहीं दे पाये थे पर कौशल्या ने उनका लालन-पालन माता और पिता बन कर ही किया था ।
रामसींग की जब शादी हुई थी तब वे कश्मीर की बार्डर पर पोस्टेट थे । शादी के कुछ दिनों के बाद ही वे अपनी पत्नी को कश्मीर लेकर आ गये थे साथ में अपनी माॅ को भी गांव से ले आये थे । सेना की नौकरी में डयूटी का समय तय नहीं होता । एक सैनिक चैबीसों घंटे आॅन डयूटी रहता है । कब वर्दी पहनकर जाना पड़ जाये इसके लिये सैनिक को हरदम सतर्क को तैयार रहना होता है । कश्मीर का क्षेत्र वैसे भी आतंकवादियों के कारण अलर्ट पर था । रामसींग कर्नल जैसे महत्वपूर्ण पद पर थे इस कारण उनके काम करने का समय निर्धारण और कठिन था । कई बार तो वे दो-दो दिन घर वापिस नहीं आ पाते थे । कौशल्या के साथ माॅ थीं तो वे निश्चिन्त रहे आते । शादी के एक साल बाद ही अमरदीप का जन्म हो गया था । रामसींग उस समय कश्मीर के सरकारी भवन में घुसे आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ कर रहे थे । सेना ने उस भवन को चारों ओर से घेर रखा था । रामसींग की अपनी टोली के सैनिकों के साथ मोर्चे पर डटे हुए थे । उन्हें मालूम था कि उनकी पत्नी की डिलेवरी कभी भी हो सकती है । डयूटी पर आते वक्त माॅ ने कहा भी था
‘‘बेटा बहु को कभी भी अस्पताल ले जाना पड़ेगा……यदि तुम छुट्टी ले सको तो ले लो’’ ।
‘‘माॅ यह संभव नहीं है……..मैं मकसूद को बोले देता हॅू वह पूरे समय आप लोगों के साथ रहेगा ।’’ कहकर रामसींग डयूटी पर निकल गये थे । मकसूद उनका अर्दली था और उनका बेहद वफादार भी था । रामसींग उस पर बहुत भरोसा करते थे और मकसूद भी उनके भरोसे पर खरा उतरता था । मकसूद ने ही सारी भागदौड़ की थी । आधी रात को जब कौशल्या का दर्द असहनीय हो गया तो वो ही उन्हें लेकर अस्पताल गया था । पूरे समय वह सतर्क निगाहों से सेवा में जुटा रहा और जैसे ही नर्स ने बेटा पैदा होने की सूचना दी उसने हेडक्वार्टर में इसकी सूचना भेज कर कर्नल साहब को बता देने का अनुरोध किया । कर्नल साहब अपनी बंदूक को लोड कर ही रहे थे तभी एक सैनिक ने आकर उन्हें खुशखबरी सुनाई । आतंकवदियों के साथ मुठभेड़ तीन दिन तक चलती रही । रामसींग तीन दिन तक अपने घर नहीं जा पाये । जब वे घर पहुंचे तब तक कौशल्या की अस्पताल से छुट्टी कर दी गई थी । वे अपराधभाव लिये कौशल्या के सामने जा खड़े हुए थे ।
कौशल्या के चेहरे पर नाराजी नहीं बल्कि प्रसन्नता के भाव थे । कौशल्या सेना की डयूटी और रामसींग के काम करने के तरीके से अपने आपको एडजस्ट कर चुकी थी । हर सैनिक की तरह रामसींग भी ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ और देशभक्ति का जज्बा लिये थे । वे सेना में नौॅकरी करने के उद्देश्य से गए भी नहीं थे उन्हें तो अपनी भारत माता का कर्ज उतारना था । उनके लिये अपना देश पहिले था और सारा कुछ बाद में
‘‘मैं भी दूसरे नम्बर पर हूॅं…’’
‘‘दूसरे नहीं……..तीसरे……’’
‘‘अब एक और कौन मेरे पहिले आ गया..’’
‘‘भारत माता…….मेरी माता…….फिर मेरी पत्नी…….’’
वह खामोश रही ।
‘‘कौशल्या…..तुम भले ही नाराज हो जाओ……पर मेरा क्रम यह ही रहेगा….जब भारत माता मुझे पुकारेगी तो मैं अपनी माॅ की आवाज को अनसुना कर उनकी सेवा में खड़ा हो जाउंगा और जब माॅ मुझे पुकारेगी तो मैं तुम्हारी आवाज को अनसुना कर दूंगा…….’’
कौशल्या कुछ नहीं बोली ।
‘‘कौशल्या जब तुम माॅ बनोगी न तब ‘‘माॅ’’’ होने का मतलब समझ में आयेगा….जिस नाम के साथ माॅ का सम्बोधन होता है न वह ईश्वर से भी बड़ा हो जाता है । हर माॅ अपने बच्चे को अपना सर्वस्व निछावर कर पालती है बगैर किसी उम्मीद के, निःस्वार्थ भाव का माॅ सें बड़ा उदाहरण कोई दूसरा नहीं है ।’’
कौशल्या के चेहरे पर प्रशंसा के भाव उभर आये थे ।
‘‘कौशल्या……..जब तुम माॅ बनोगी न तब अपने बच्चों को ऐसे संस्कारित करना कि उनके सामने अच्छी संतान होने के सारे उदाहरण फेल हो जायें ’’
‘‘आप निश्चिंत रहें ऐसा ही होगा…..हमारी संतान आपकी तरह अपने माता पिता की सेवा करने वाली ही होगी ।’’
रामसींग ने कौशल्या को गले से लगा लिया था ।
हर पत्नी की तरह कौशल्या भी चाहती थी कि जब उसकी पहली संतान का जन्म हो रहा हो तब रामसींग उनके पास रहे पर रामसींग ऐसा नहीं कर पाये । कौशल्या के चहरे पर इसको लेकर कोई नाराजगी के भाव नहीं थे । वह एक अच्छी पत्नी की भूमिका में थी और जानती थी कि रामसींग मेरी जैसी बहुत सारी महिलाओं को सुरक्षित रखने के अपने दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं । वो जब तक अस्पताल में रही हर पल रामसींग के आने की प्रतीक्षा करती रही पर रामसींग नहीं आये तो भी सहज बनी रहीं । उसके पास अब छोटा रामसींग जो आ चुका था । रामसींग अपना सिर झुकाये उसके सामने खड़े थे । कौशल्या ने रामसींग का हाथ अपने हाथ में ले लिया था और दूसरे हाथ से अपने बाजू में लेटे बेटे की ओर इशारा किया । रामसींग ने उसे अपनी गोद में उठा लिया था । वे बहुत देर तक अपने नवजात को अपने सीने से लगाये रहे थे ।
‘‘कौशल्या……तुम नाराज तो नहीं हो न………’’
‘‘नहीं………मेरे पास एक अमूल्य उपहार जो है……बिल्कुल आपकी तरह…’’
‘‘ओह…………मैं तो सोच रहा था कि आप मालूम नहीं मुझसे बात भी करोगे की नहीं……’’
‘‘अरे ऐसा क्यों………….मैं जानती हूॅ कि आप हमारी भारत माता की सेवा में लगे हो….फिर मैं नाराज क्यों होउंगीं…………’’
रामसींग बहुत देर तक कौशल्या का हाथ अपने हाथों में लिये बात करते रहे ।
रामसींग की आंखों से आंसू बह निकले थे । उनके सामने कौशल्या का निर्जीव शरीर पड़ा था । कौशल्या के साथ बिताये एक एक पल उनकी आंखों के सामने से चलचित्र की भांति उभर रहे थे । अमरदीप के दो साल बाद रतनदीप का जन्म हुआ था । रतनदीप के जन्म के समय वे कौशल्या के साथ थे । रतनदीप के जन्म के कुछ ही महिनों के बाद उनकी माॅ का स्वंर्गवास हो गया था । रामसींग के साथ ही साथ कौशल्या के लिये भी यह बहुत बड़ा आघात था । कौशल्या अब तक माॅ से बेटी की तरह जुड़ चुकी थी । दोनों के बीच बेहद स्नेह और दुलार था । रामसींग के घर पर न रहने के समय दोनों एक दूसरे के भरोसे रहीं आतीं थीं । बच्चों को ध्यान माॅ ज्यादा रखतीं । माॅ के निधन से भाव विहल हुए रामसींग ने लम्बी छुट्ठी ले ली थी । इस अवकाश में रामसींग ने कौशल्या और बच्चों के लिये अन्यत्र शहर में मकान लिया था ताकि बच्चों की बेहतर पढ़ाई लिखाई की व्यवस्था भी हो सके । वे जानते थे कि माॅ के रहने पर सारी जिम्मेदारी अब केवल कौशल्या को ही उठानी थी । अवकाश से लौटने के बाद रामसींग की पोस्टिंग कारगिल में हो गई थी ।
कौशल्या अकेली पड़ गई थी । रामसींग उसे कारगिल तो ले जा नहीं सकते थे वैसे भी उन्होने उनका इंतजाम अलग कर ही दिया था । वह जानती थी कि अब उसे लम्बे समय तक अकेले ही रहना होगा और बच्चों की परवरिश करनी होगी । रामसींग का विश्वसनीय नौकर मकसूद उनके साथ साये की तरह रहता था । कौशल्या ने अपने आपको इन परिस्थितयों के लिए ढाल लिया था । उसने अपना सारा ध्यान बच्चों पर लगा दिया था । दोनो बच्चों के एडमीशन स्कूल में कराने के बाद उसकी व्यस्तता बढ़ गई थी । रतनदीप को सुबह स्कूल छोड़कर वह अमरदीप के लिये डिब्बा बनाती और उसे तैयार करती । अमरदीप को स्कूल छोड़ने जाती और लौअते समय रतनदीप को स्कूल से लाती । स्कूल से आने के बाद रतनदीप को ट्यूशन छोड़ने चली जाती तो लौटते समय अमरदीप को स्कूल से लाती फिर अमरददीप को खाना खिलाकर उसे ट्यूशन छोड़ने जाती तो लौटते समय रतनदीप को साथ में लेकर आती । बाद में अमरदीप को लेने अकेले ही जाती । इतने सब में शाम हो जाती । वह दोनों का होमवर्क कराती और उन्हें सुला देने के बाद वह दो घड़ी आराम करती और खाना खाती । लगभग इसी समय वह रामसींग से फोन पर बात करती । वह अपनी परेशानी रामसींग को कभी नहीं बताती । वो भले ही रामसींग को कुछ नहीं बताती हो पर रामसींग इन परिस्थितियों से अंजान नहीं था पर उसके पास कोई अन्य विकल्प था भी नहीं ।
अमरदीप को किसी अंजानी बीमारी की वजह से अस्पताल में भरती कराना पड़ा था । उसे स्कूल में
चक्कर आ गये थे और वह बेहोश हो गया था । अस्पताल में उसका इलाज लम्बा चलेगा ऐसा डाक्टरों ने बता दिया था । इसी वजह से उसे रामसींग को अमरदीप के बीमार होने की सूचना देना पड़ी थी । रामसींग कारगिल की दुर्गम बर्फीली पहाड़ियों में ड्यूटी पर तैनात था इसलिये उसे अवकाश मिलना कठिन था । वह मुश्किल से एकाध दिन की छुट्टी लेकर ही अमरदीप को देखने आ पाया था । कौशल्या अकेली पड़ गई थी पर वह बड़े र्धर्य के साथ अमरदीप की देखभाल कर रही थी । रतनदीप का भी ध्यान रखना जरूरी था । वह दिन भर अकेले कामों के बीच संतुलन बनाये रखती । रात को रतनदीप को मकसूद के साथ घर पर सुलाकर स्वंय अमरदीप के पास अस्पताल में सोती । अमरदीप को स्वस्थ्य होने में लगभग तीन माह लग गये थे । इन तीन माह में कौशल्या टूट चुकी थी पर अमरदीप के स्वस्थ्य होते चेहरे को देखते ही वह अपने आपको तरोताजा महसूस करने लगती । रामसींग कभी कभी एकाध दिन के लिये अमरदीप को देखने आते और चले जाते । उन्हें कौशल्या पर पूरा भरोसा था ।
समय पंख लगाकर उड़ने लगा । दोनों बच्चे उच्च शिक्षा के लिये बड़े शहर जा चुके थे । रामसींग भी रिटायर्ड हो चुके थे । रिटायर्ड होने के साथ ही रामसींग ने दो ब्लाक वाला नया मकान बनवा लिया था ‘‘एक अमरदीप के लिये और दूसरा रतनदीप के लिये’’ । नये मकान को आधुनिक सुविधाओं से सजाया भी गया था
‘‘कौशल्या में अपने बच्चों के साथ तो रह ही नहीं पाया अब बच्चों की पढ़ाई हो जाये तो उन्हें यहीं बुला लेगें और अपने साथ रखेगें….’’ ।
‘‘मेरे साथ भी तो नहीं रहे आप…………’’ कनखियों से देखते हुए कौशल्या ने बोला ।
‘‘हां….पर अब रहूंगा न ……अब कहीं नहीं जाना है……….बच्चे और आ जायें तो हम अपना भरपूर जीवन जी लेगें’’ रामसींग के चेहरे पर उत्साह के भाव थे ।
अमरदीप की पढ़ाई पूरी होते ही उसे एक कम्पनी में नौकरी मिल गई । रामसींग ने उसे कहा भी कि वह कुछ दिन साथ में रह ले फिर नौकरी करे पर अमरदीप नहीं माना
‘‘पापा अच्छे जाॅब अब मिलते कहां हैं….मेरी किस्मत से अच्छा जाॅब मिल गया है तो मुझे करने दो…’’
कहकर अमरदीप ने फोन काट दिया था ।
रामसींग अपने बेटे का इस तरह से बात करना अच्छा नहीं लगा । पर वे कर भी क्या सकते थे ।
‘‘बुरा मानने की जरूरत नहीं है……बच्चे अपने ढंग से सब सोचते हैं…..उसे लग रहा होगा कि वह अच्छा जाॅब तो उसे करने दो……हम रतनदीप को बुला लेगंे’’ । कौशल्या ने रामसींग को बहलाने के लिये कह तो दिया था पर उसे भरोसा नहीं था कि रतनदीप भी उनकी बात मान ही लेगा । हुआ भी यहीं रतनदीप की पढ़ाई पूरी होने के बाद अमरदीप की कम्पनी में ही उसकी भी जाॅब लग गई । दोनों भाई एक ही शहर में एक ही कम्पनी में जाॅब करने लगे । कौशल्या ने केवल फोन पर रतनदीप से जाॅब लगने की बात सुनी थी कोई जबाब नहीं दिया था । बच्चों के आने की आस में रामसींग और कौशल्या अपने घर को सजाते और संवारते रहे पर बच्चों ने साल में एकाध बार आना भी छोड़ दिया था ।
‘‘बेटा तुम लोग दीपावली पर जरूर आ जाना…….’’
‘‘देखते हैं माॅ…..कुछ कह नहीं सकते’’
‘‘ नहीं बेटा तुम लोगों कें बिना घर सूना-सूना लगता है………’’
‘‘तो क्या करें………जाॅब छोड़कर आपके पल्लू में आकर रहने लगें…’’
‘‘जाॅब मत छोड़ो पर इतनी छुट्टी तो हर नौकरी में मिलती हैं कि साल में कभी कभार अपने माॅ-बाप से मिलने आ सको….’’ कौशल्या के चेहरे पर उदासी के भाव थे जिसे दूर बैठा उनका बेटा पढ़ नहीं सकता था ।
‘‘देखते हें माॅ……..’’
‘‘देखो बेटा……तुम लोगों के बिना तुम्हारे पापा भी दिन भर उदास बैठे रहते हैं इतने बड़े घर में हम दोनों ही हैं सारा घर काटने को दौड़ता है…’’
‘‘तुम दोनों दीपावली पर आ ही जाना……तुम्हारे पापा की उदासी मुझसे देखी नहीं जाती’’
कौशल्या क्ी आंखों से आंसू बह ही निकले थे । दूसरी ओर से केवल फोन रखे जाने की आवाज ही आई थी । रामसींग और कौशल्या दीपावली पर अपने बेटों के आने की राह देखते रहे । उनकी हिम्मत दोबारा फोन लगाकर पूछ लेने की भी नहीं हो रही थी ।
दीपावली पर रामसींग के घर के दिए ज्यादा देर तक अपनी रोशनी नहीं बिखेर सके । रामसींग खुद भी नहीं चाहते थे कि उनका घर उजियारे से भर जाये । घर का उजियारा तो संताने होतीं हैं जब संतानें ही बेरूखी पर उतर आयें तो फिर अंधेरा ही ठीक है । कौशल्या की आंखों से आंसू रूक नहीं रहे थे वह ज्यादा हताश और निराश थी
‘‘अरे खुद नहीं आ पा रहे थे तो यह ही कह देते कि पापा-मम्मी आप यहां ही आ जाओ हम सभी दीपावली यहीं मना लेगें…….पर किसी ने नहीं कहा’’
कौशल्या सुबक पड़ी थी ।
‘‘कर्नल साब मैं अपने बच्चों को संस्कार देने में, मैं फेल हो गई’’ ।
दुखी तो रामसींग भी थे पर वे अपने दुख को व्यक्त कर कौशल्या का दुख नहीं बढ़ाना चाह रहे थे इसलिये अपने आंसूओं को अंदर ही समेटते जा रहे थे
‘‘तुम्हारी कोई गल्ती नहीं है कौशल्या…….तुम उदास मत हुआ करो…..भूल जाओ कि हमारी संतानें भी हैं…….’’
दोनों खामोश होकर अपपे अपने दर्द को पीते रहे ।
कौशल्या अपनी वेदना से उबर नहीं पाई तभी तो अचानक ही उसके सीने में दर्द बढ़ा और उसे अस्पताल ले जा पाते इसके पहिले ही वह हमेशा के लिये खामोश हो गई । कौशल्या का यूं अचानक चले जाना रामसींग के लिये भी कष्टदायक साबित हो रहा था ।
सुबह का उजियारा चारों ओर फैल चुका था । रामसींग की दर्द भरी रात केवल अतीत के झरोखों से झांकते हुए ही गुजर गई थी । उन्हें केवल एक ही सहारा था कि उनके बेटे आ जायेगें और वे अपने पिता के दु‘ख के सहभागी बन जायेगें । वें अपने बेटों के कांधे पर सिर रखकर रो लेना चाह रहे थे । पिछले चैबीस घंटों से उनकी आंखों में रूके आंसू बरस लेना चाह रहे थे । वे चाह रहे थे कि उनके बेटे जब अपनी माॅ की लाश से लिपट कर रोयेगें तो वो भी अपने सारे आंसू बहा लेगें । कम से कम उन्हें ढाढ़स बंधाने के लिये उनके बेटे तो उनके पास होगें ही न । कौशल्या के बिना वे इस घर में रह भी नहीं पायेगें तो बेटों से कहेगें कि वे नौकरी छोड़कर यहीं आ जायें या उन्हें भी अपने साथ ले चलें । उनकी निगाहें अपने बेटों के आने की प्रतीक्षा कर रहीं थीं । बार बार वे घर के मुख्य द्वार की ओर देख लेते । पड़ोसियों ने अंतिम क्रिया के सारे इंतजाम कर लिये थे ताकि जैसे ही उनके बेटे आयेगें वे शवयात्रा निकाल लेगें ।
गाड़ी के रूकने की आवाज रामसींग को भी सुनाई दी थी । वे समझ गए थे कि उनके बेटे आ गये हेंै । अपनी आंखों में ढेर सारे आंसू इकट्ठा कर वे अपने बेटों को अपने तन से लिपट कर रोते हुए देख रहे थे । कार से केवल रतनदीप ही निकला था । सूट टाई और महंगे गागल उसकी आंखों में थे । वह बड़े आराम से कार से उतरा और आकर रामसींग के पास बैठ गया । रामसींग ने अपरिचित निगाहों से उसे देखा ।
‘‘कौन……………….’’
‘‘मैं रतनदीप………………’’
रामसींग आवाक थे । वे तो कल्पना कर रहे थे कि बेटे आते से ही अपनी माॅ के निर्जीव शरीर से लिपट जायेंगे । संतानों के आंसू नहीं रूकेगें । बेटों के लिये माॅ तो पिता से ज्यादा संवेदनशील रिश्ता होती हेै । पर रतनदीप तो ऐसे तैयार होकर आया है जैसे शादी-ब्याह में आया हो । एसकी आंखों में एक बूंद आंसू नहीं हेंै यहां तक कि उसने माॅ के निर्जीव शरीर को भी देखने का प्रयास तक नहीं किया । वे भावशून्य हो गये थे ।
‘‘जरा जल्दी कर लें आप लोग मुझे अभी निकलना है…..एक बहुत जरूरी मीटिंग में जाना है’’
उसने पड़ोसी जो शवयात्रा का इंतजाम कर रहे थे उनसे बोला ।
‘‘क्यों अमरदीप नहीं आया…..’’
‘‘नहीं भाई नहीं आ पाये………कह रहे थे कि माॅ की अंतिम क्रिया में तुम चलो जाओ पिता की अंतिम क्रिया में मैं चला जाउंगा…’’ । बगैर किसी किस्म का भाव लिये रतनदीप ने अमरदीप के न आने की कहानी सुना दी ।
रतनदीप की बात सुनकर सारे लोग भौंचक्के हो गये थे ।
रामसींग को अपने बेटे की ऐसी किसी बात की कल्पना भी नहीं थीे । रतनदीप की बातों को सुनकर वे खामोश हो गये । अपनी वेदना को दबाने के लिये अपने कमरे में चले गए । कमरे को उन्होने अंदर से बंद कर लिया था । बाहर सारे लोग उनका इंतजार कर रहे थे ।
कुछ देर बाद कमरे से बंदूक चलने की कर्कश आवाज सुनाई दी ।
कमरे के दरवाजे को तोड़कर जब लोग अंदर पहुंचे तो उन्हें कर्नल रामसींग का खून से लथपथ शरीर ही मिला । उनके निर्जीव शरीर के पास एक पत्र रखा था
‘‘प्यारे बेटो तुम लोगों को अब बाप के अंतिम संस्कार मैं दोबारा यहां आने का कष्ट नहीं करना पड़ेगा । तुम अपने मां ओर बाप का अंतिम संस्कार करना चाहो तो अभी कर दो । हम लोगों ने तो तुम्हे वो सब कुछ देने का प्रयास किया
जिसके तुम हकदार थे पर तुम लोग हमें वह नहीं दे पाये जिसके हकदार हम थे । तुम्हारी माॅ जीवन के अंतिम क्षण तक केवल तुम लोगों को एक बार देख लेने की चाह लिये चलीं गई मैं कौशल्या के शव के साथ अपनी वेदना को झेलता हुआ सिर्फ इसलिये तुम लोगों का इंतजार करता रहा कि तुम आकर मेरे दुख में सहभागी बन जाओगे और मुझे ढाढ़स बंधाकर मुझे जीने की राह दिखाओगे । मुझे नहीं मालूम था कि तुम लोग अब हमारे बेटे रहे ही नहीं हो । तुम लोगों से अच्छे तो ये हमारे पड़ोसी हैं जो कल से मेरा दुख हल्का करने का प्रयास कर रहे हैं । तुमने बताया था न कि भाई मेरी अंतिम क्रिया में आयेगा मैं उसका समय बर्बाद नहीं करना चाहता अब तुम आ ही गये हो तो तुम ही एक साथ दोनों कारज निपटा लो । और हां यदि तुम्हारे पास समय न हो तो तुम चले जाना मेरे पड़ोसी तुम्हारी माॅ का और मेरा क्रियाकर्म कर ही देगें ।’’
सभी हतप्रभ थे और रतनदीप सिर झुकाये बैठा था ।

कुशलेंद्र श्रीवास्तव
नरसिंहपुर म.प्र

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।