खुद लिखते है

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कभी गमो का साया था
तो कभी खुशी का साया।
फर्क बस इतना था
जिस से हमने पाया ।
वो पहले गम था और
बाद में खुशी देने वाला।
वो कोई और नहीं था
हमारा ही मन था।।

डूब जाते थे तब हम
जब नहीं समझ पाते थे।
और गमो के अंधेरों में
अपने आपको पाते थे।
ये सब हमारे मन की
ही सोच होती थी।
जिसे हम और आप
उस वक्त पढ़ नहीं पाते।।

परस्थितियों से तुम
कभी मत घबराया करो।
समस्या का समाधान
तुम्हें ही खोजना है।
तभी तो सफलता
तुम्हारे कदमो को छूएगी।
और जीवन के लक्ष्य को
तुम हासिल कर पाओगें।।

बैठकर हाथ पर हाथ
हमें कुछ नहीं मिलता है।
जो भी मिलता है वो
कर्म करने से मिलता है।
इसलिए तो कर्मवीरों का आज कल बोलबाला है।
जो अपने हाथों से ही खुदकी किस्मत लिखते है।
और सच्चे योध्दा और
शूरवीर ये ही कहलाते है।।

जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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