अब वो गांव,गांव न रहा।
वो माटी में माटी का भाव न रहा।
गांव को देखा तो
मेरे गांव से मुंशी प्रेमचंद का गांव
छूमंतर नजर आया।
अब गांव में बहुत-सा अंतर नजर आया।
अब सचमुच मेरा गांव बदल गया है।
गांव को भी अब शहर निगल गया है।।
अब खेत में हल वाला वो कल नजर नहीं आता।
बच्चों के गिल्ली-डंडा कबड्डी वाला वो पल नजर नहीं आता।।
ट्रैक्टर से जोती जाती खेत की अब धूल है।।
नन्हें-मुन्ने बच्चे व्हाट्सएप और फेसबुक चलाने में मशगूल हैं ।
अब घर में न माटी के चूल्हे हैं।
हर घर में झूठे दिखावे के दूल्हे हैं।।
अब आटे की घट्टी भी चलती नहीं है।
अब चूल्हे में आग भी जलती नहीं है।।
गांव में चौपाल पर गाय नजर नहीं आती।
अब होली-दिवाली पर औरतें गीत नहीं गाती।।
कल जिस गांव में घर के बाहर गाय खड़ी रहती थी।
आज अब उन्हीं घरों के बाहर फोर व्हीलर गाड़ियां बड़ी-बड़ी खड़ी रहती हैं।।
बैठकर कुछ बुजुर्गो के संग मैं चर्चा उस पुराने गांव की सुनता हूं।
कहते हैं बुजुर्ग कि
अब वो घर चूल्हा,आग और अलाव न रहा।
बेटा तुम सच कहते हो कि अब गांव गांव न रहा।।
शहर से निकलकर गांव में ही
गांव की तलाश करता रहा।
शहर की अंधी दौड़ में मेरा गाँव
एक अकेला गाँव में ही मरता रहा।।
कुछ शहर चले आए,अब गांव छोड़ दिया है।
दो पैसा कमाकर जन्मभूमि गांव से नाता तोड़ दिया है।।
गांव की तलाश में अंत में मैं
जा पहुँचा गांव की मेढ़ पर।
नजर पड़ी वहीं मेरी एक पीपल के पेड़ पर।।
डरा-सहमा-सा गांव मिला।
खून से लथपथ उसका पांव मिला।।
मुझे बोला-बेटा,मैं गांव हूँ,
मैं वही गांव हूँ, जिसकी तलाश में
तुम निकले हो।
कुछ बात बता रहा हूँ, तुम नेक और भले हो।।
हाँ, मैं एक गांव हूँ
मगर मैं भी अब गांव छोड़कर
जा रहा हूँ।
गांव से रिश्ता तोड़कर जा रहा हूँ।।
कुछ मुझ गांव को छोड़कर
शहर कमाने चले गए।
मैं गांव में ही रुका रहा,मुझे छोड़ कितने जमाने चले गए।।
अब हर कोई हाय पैसा-पैसा में उलझा हुआ है।
हर कोई कहता शहर में मजा है।।
अब आजकल के आदमी को सहजता-सरलता सुहाती नहीं।
अब गांव में भी गाय नजर आती नहीं।।
पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति की विकृति ने मुझे कंगाल कर लिया है।
फैशन और व्यसन ने गांव को भी अब बेहाल कर लिया है।।
इसलिए बेटा,जाओ इस गांव से
और किसी और गांव में जाकर
तुम्हारे गांव का पता लगाना।
मिल जाए तो इस गांव के रहने के
लिए भी अब एक गांव बताना..???
#दिनेश्वर माली
परिचय:दिनेश्वर माली की पहचान कवि,लेखक औऱ पत्रकार के रुप में है।आप मुम्बई में एक अखबार के संपादक हैं औऱ यहीं कालबादेवी रोड पर रहते हैं। आप कवि के तौर पर मंचों पर काव्य पाठ करते हैं एवं लेखन में सतत सक्रिय हैं।