अब गांव,गांव न रहा

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dineshwar
अब वो गांव,गांव न रहा।
वो माटी में माटी का भाव न रहा।

गांव को देखा तो
मेरे गांव से मुंशी प्रेमचंद का गांव
छूमंतर नजर आया।
अब गांव में बहुत-सा अंतर नजर आया।

अब सचमुच मेरा गांव बदल गया है।
गांव को भी अब शहर निगल गया है।।

अब खेत में हल वाला वो कल नजर नहीं आता।
बच्चों के गिल्ली-डंडा कबड्डी वाला वो पल नजर नहीं आता।।

ट्रैक्टर से जोती जाती खेत की अब धूल है।।
नन्हें-मुन्ने बच्चे व्हाट्सएप और फेसबुक चलाने में मशगूल हैं ।

अब घर में न माटी के चूल्हे हैं।
हर घर में झूठे दिखावे के दूल्हे हैं।।

अब आटे की घट्टी भी चलती नहीं है।
अब चूल्हे में आग भी जलती नहीं है।।

गांव में चौपाल पर गाय नजर नहीं आती।
अब होली-दिवाली पर औरतें गीत नहीं गाती।।

कल जिस गांव में घर के बाहर गाय खड़ी रहती थी।
आज अब उन्हीं घरों के बाहर फोर व्हीलर गाड़ियां बड़ी-बड़ी खड़ी रहती हैं।।

बैठकर कुछ बुजुर्गो के संग मैं चर्चा उस पुराने गांव की सुनता हूं।

कहते हैं बुजुर्ग कि
अब वो घर चूल्हा,आग और अलाव न रहा।
बेटा तुम सच कहते हो कि अब गांव गांव न रहा।।

शहर से निकलकर गांव में ही
गांव की तलाश करता रहा।
शहर की अंधी दौड़ में मेरा गाँव
एक अकेला गाँव में ही मरता रहा।।

कुछ शहर चले आए,अब गांव छोड़ दिया है।
दो पैसा कमाकर जन्मभूमि गांव से नाता तोड़ दिया है।।

गांव की तलाश में अंत में मैं
जा पहुँचा गांव की मेढ़ पर।
नजर पड़ी वहीं मेरी एक पीपल के पेड़ पर।।

डरा-सहमा-सा गांव मिला।
खून से लथपथ उसका पांव मिला।।

मुझे बोला-बेटा,मैं गांव हूँ,
मैं वही गांव हूँ, जिसकी तलाश में
तुम निकले हो।
कुछ बात बता रहा हूँ, तुम नेक और भले हो।।

हाँ, मैं एक गांव हूँ
मगर मैं भी अब गांव छोड़कर
जा रहा हूँ।
गांव से रिश्ता तोड़कर जा रहा हूँ।।

कुछ मुझ गांव को छोड़कर
शहर कमाने चले गए।
मैं गांव में ही रुका रहा,मुझे छोड़ कितने जमाने चले गए।।

अब हर कोई हाय पैसा-पैसा में उलझा हुआ है।
हर कोई कहता शहर में मजा है।।

अब आजकल के आदमी को सहजता-सरलता सुहाती नहीं।

अब गांव में भी गाय नजर आती नहीं।।
पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति की विकृति ने मुझे कंगाल कर लिया है।
फैशन और व्यसन ने गांव को भी अब बेहाल कर लिया है।।

इसलिए बेटा,जाओ इस गांव से
और किसी और गांव में जाकर
तुम्हारे गांव का पता लगाना।
मिल जाए तो इस गांव के रहने के
लिए भी अब एक गांव बताना..???

                                                                             #दिनेश्वर माली
परिचय:दिनेश्वर माली की पहचान कवि,लेखक औऱ पत्रकार के रुप में है।आप मुम्बई में एक अखबार के संपादक हैं औऱ यहीं कालबादेवी रोड पर रहते हैं। आप कवि के तौर पर मंचों पर काव्य पाठ करते हैं एवं लेखन में सतत  सक्रिय हैं।

matruadmin

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।