काँव-काँव,मची हर ओर,
वाक़ई बहुत,बढ़ा है शोर..।
अज़ान या आरती से नहीं,
घण्टा शंख ध्वनि से नहीं..
पवित्र गुरुवाणी से नहीं,
किसी की प्रार्थना से नहीं..
इसका कारण है कुछ और,
वाक़ई बहुत,बढ़ा है शोर…।
कलयुग के कल-कारखाने,
कल-कल करते रहते हैं।
चौड़ी सड़कों पर सब वाहन,
चीं पों करते चलते हैं…
मध्यरात्रि हो या,पड़ी हो भोर,
वाक़ई बहुत,बढ़ा है शोर…।
वाद्ययंत्र पुरातन बस,
इतिहास में हैं सो गए..
डीजे डिस्को धुन में,
सब युवा हैं खो गए..
धर्म का करते ढकोसला जो,
भीतर से कमज़ोर..
वाक़ई बहुत,बढ़ा है शोर…।
#शशांक दुबे
परिचय : शशांक दुबे पेशे से उप अभियंता (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना), छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश में पदस्थ है| साथ ही विगत वर्षों से कविता लेखन में भी सक्रिय है |