प्यार का खत

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खत प्यार का एक
हमने उनको लिखा।
पर पोस्ट उस को
अब तक नहीं किया।
अपने अल्फाजो को
अपने तक सीमित रखा।
बात दिल की अपनी
उन तक पहुंच न सका।।

डर बहुत मुझको उनसे
और अपनों से लगता था।
कही बात का बतंगड़
कुछ और बन न जाये।
इसलिए में अपने प्यार का
इजहार उनसे कर न सका।
और जो आंखों से चल रहा था
उसे ही आगे जारी रखा।।

लगता था एक दिन
बात बन जाएगी।
प्यार के अंकुर
दिलो में खिल जाएंगे।
पर ऐसा अब तक
कुछ भी हुआ ही नहीं।
और दोनों को किनारे
अबतक मिल न सकें।।

फिर समय ने अपना
काम कर दिया।
उनकी जिंदगी में एक
नया अध्याय जोड़ दिया।
और हम इस किनारे बैठकर
दुनियाँ उजड़ते देखते रहे।
और प्यार का जनाजा
निकलता हम देखते रहे।।

जय जिनेन्द्रा देव
संजय जैन (मुम्बई)

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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