पापा की वह नन्ही परी दिन भर उड़ती रहती थी।
अरमानों के पंख लगाकर स्वप्न लोक में रहती थी।
न समझ थी दुनिया की न समझना उसे आता था।
दुनिया तो पापा थे ,
जाने क्या वह नाता था।
रक्षा कवच बनकर हर दम
चले वह साथ उसके ।
गिरकर उठना उठकर चलना उन्होंने उसे सिखाया था ।
कुरीतियों से निकल कर
हालातों से लड़ना सिखाया था
न डर था गिरने का
न गुमराह हो जाने का,
मेरी बेटी मेरा स्वाभिमान
ऐसा विश्वास पिता का था।
छल भरी इस दुनियां में
सुरक्षित पिता का साया था।
कितना सुरक्षित था बचपन
वह आज समझ में आया है।
जीवन के जिस मोड़ पर
आकर खड़ी है यह जिंदगी।
धन वैभव ऐश्वर्य बहुत है,
फिर भी है सुरक्षा का अभाव यहाँ,
पल में अपनी पल में बेगानी
रंग बदलती दुनिया में
कहने को सब अपने है पर
नही पिता का साया है।
जिसके साये में बचपन बीता
वह बचपन स्वप्न भरा सा है।
जीवन की सच्चाई यही है
बिन पिता यह कांटो भरा सा है।
कांटो भरा सा है……
मिस यू पापा
#शीतल रॉय
परिचय:विगत 1 दशक से अधिक समय से इंदौर में पत्रकारिता कर रही शीतल रॉय वर्तमान में वुमन प्रेस क्लब की प्रदेश अध्यक्ष हैं।