हाय….ये बत्ती न हुई हमारी

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madhukar
जैसे ही सरकार ने नेताओं और अधिकारियों के वाहनो से लाल-पीली बत्ती हटाने की घोषणा की…. हजारों अपात्र नेताओं और अधिकारियों के चेहरे का नूर ही गायब हो गया….कल तक जो लाल-पीली बत्ती का रौब पड़ोसियों और मोहल्ले वालों पर झाड़ते थे….बत्ती देखकर चर्चा करते….अपना पड़ोसी बहुत बड़ा अधिकारी है,तभी तो उसकी गाड़ी में बत्ती लगी है…। गाहे-बगाहे साहब की नजर भर उन पर पड़ जाए तो जैसे उनका तो जीवन ही सफल हो गया…इस तरह के विचार भी आते होंगे..बत्ती वाले अधिकारी का सीना गाड़ी में बैठते और उतरते वक्त दो चार इंच ज्यादा ही हो जाता है…अब बत्तीविहीन पड़ोसियों और मोहल्ले वालों के सीने अधिकारी को देखकर छह आठ इंच ज्यादा फूल
जाएँगे….यह देखकर कि ‘अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे’..लेकिन मुझे चिन्ता इस बात की हो रही है कि,बत्ती निकालने के बाद उनका सीना फूलना बन्द हो जाएगा,तो कहीं-कोई अनहोनी न हो जाए…आप भी जरा सोचें…दिन में कई बार फूलने
वाला सीना जब एक बार भी नहीं फूलेगा तो इसके कहीं दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट )पड़ने का खतरा बना रहेगा..लेकिन कैसा असर होगा,यह
देखने की बात है…अब क्षुद्र बुद्धि भी कभी किसी का भला सोचती ?  हम तो उनके शुभचिन्तक थे, हैं,और आगे भी रहेंगे..
जिन्हें लाल-पीली बत्ती वाली गाड़ी में बैठने का सुख नहीं मिला,वे ही
सरकार के इस क्रांतिकारी निर्णय से खुश होंगे लेकिन मेरे मित्र चोखेलाल और ऐसे हजारों अधिकारी जो रौब झाड़ते थे, मोहल्ले से लेकर टोल नाके तक …उनके ऊपर क्या बीतेगी… सरकार को इस बारे भी कुछ सोचना चाहिए था..।
चरणबद्ध तरीके से बत्तियां हटाते..एक ही झटके में हलाल कर दिया. उफ करने का मौका भी नहीं मिला.. मैं तो यही सोचकर हैरान और परेशान हो गया कि, अब उन पर क्या बीतेगी जब वे बिना बत्ती के घर से निकलेंगे…अब तो पड़ोसी भी
हिकारत भरी नजरों से देखेगा…सरकार तो ‘सबका साथ सबका विकास’ की बात करती
है,लेकिन इस निर्णय से तो सबकी ही बत्ती गुल कर दी..लेकिन बत्ती वालों ने अपने हाथों से बत्ती निकालकर अखबारों में फोटो छपवाकर वाहवाही लूटने का अवसर तनिक भी नहीं गंवाया..अखबारनवीस भी नहीं समझ पाए कि ये बत्ती वाले अपनी शान को कैसे अपने ही हाथों गवां रहे हैं..कभी -कभी कोई बात कैसे फलीभूत होती है …कबीरदास जी ने शायद यह दोहा इनके लिए ही लिखा है…
‘काल करे जो आज कर आज कर से अब…..’और अधिकांश बत्तीवालों ने इस दोहे का अर्थ समझने में जरा भी देर नहीं लगाई जबकि जब ये पढ़ते रहे होंगे,शायद कितनों ने नकल की होगी इस दोहे का अर्थ लिखने में..
खैर… होनी को कौन टाल सकता सकता है? फैसला तो ले लिया गया
है..टी.वी. और समाचार पत्रों में भी खूब देखा और पढ़ा है..अब उन वाहन
चालकों की मन:स्थिति पर भी विचार किया जाना चाहिए.. बत्ती वाली गाड़ी
चलाते समय इन बत्ती वाले वाहनों के चालकों पर भी बत्ती का प्रभाव देखा
जाता था..जब कहीं भीड़-भाड़ वाले इलाके से बत्ती वाली गाड़ी से जा रहे हों और वाहन को रोकना पड़े तो चालक के चेहरे पर जलती बत्ती का
प्रकाश स्पष्ट देखा जा सकता है..वह जब कांच नीचे खिसकाकर मन ही मन भद्दी-सी गाली देता है तो उसका सीना गाड़ी में बैठे साहब के सीने से भी ज्यादा चौड़ा हो जाता है.. जब साहब के परिवार को लेकर बाजार जाता है तो इस बत्ती का रौब देखने लायक होता है..वाहन चालक के साथ परिवार के सदस्य भी बार-
बार देखते हैं….गाड़ी पर बत्ती लगी तो है और यदि गलती से किसी पुलिस
वाले ने सलामी दे दी तो जैसे उनका जीवन सफल हो गया..पूरा परिवार ईश्वर का धन्यवाद देते हैं…आपने बत्ती वाले अधिकारी के घर पैदा कर हम पर बड़ी कृपा की है प्रभु..।

‘घर का जोगी जोगड़ा,आन गांव का सिद्ध……….’ यह कहावत भी इन बत्ती वालों पर सटीक बैठती है..। जहां निवास कर रहे हैं,सबको पता है साहब की औकात क्या है,लेकिन जब वे अन्य स्थानों पर जाते हैं तो उनके चेहरे की रौनक अपने आप ही बढ़ जाती है..वह भले भी नहीं कहता, लेकिन उसके हाव-भाव से यही
प्रतीत होता है…शहर से बाहर निकलकर देखो मेरी शान..टोल वाला भी पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाता और वह बिना पूछताछ के जाने देता है..टोल पर तो वाहन चालक का रुतबा तो और भी बढ़ जाता है…कांच नीचे कर जोर से कहता
है…देखता नहीं…. किसकी गाड़ी है ? बत्ती नहीं देखी ? टोल वाला बेचारा तो नहीं, लेकिन मन मसोस कर गाड़ी को आगे जाने कि लिए बेरियर ऊठा देता है, तब वाहन चालक की विजय भंगिमा देखने लायक होती है..लेकिन बदली परिस्थिति में जिस टोल पर दूर से ही बत्ती देखकर उसके लिए बेरियर खुल जाता था..अब टोल की रसीद काटने वाला अपना सीना दो इँच फुलाकर मन-ही- मन में कहेगा… आ गए न अपनी औकात में..। अब इसमें खुश होने की क्या बात….भाई मानवीय स्वभाव है..दूसरों का दुख देखकर खुशी होती है और दूसरों को खुश देखकर दुखी होते हैं..हम कोई बुद्ध महात्मा तो हैं नहीं…आम आदमियत तो कूट-कूटकर भरी है तो भला ऐसे खुश होने के मौके को हाथ से कैसे जाने देते….
यह विचार तो एक सामान्य से अदने से व्यक्ति के मन में भी आया
होगा कि,आखिर सरकार बत्ती वालों को बत्ती देने पर क्यों तुल गई….मुझे
तो लगता है,टोल वालों ने जरूर शिकायत की होगी…. हुजूर,माई-बाप
..बड़ा नुकसान हो रहा है…हर कोई अपनी गाड़ी में बत्ती लगाकर ‘सांय-सांय’ करते निकल जाता है..उनसे कुछ पूछने की हिम्मत तो नहीं होती.., लेकिन अब ऐसी बत्ती वाले जब बिना बत्ती लगाए टोल नाके से गुजरेंगे….उन्हें भी टोल टैक्स देना होगा..हे ईश्वर, ऐसे सभी सरकार पीड़ितों को सहन करने की शक्ति देना..जब टोल टैक्स लेने वाला उन्हें पहचान जाए तो वे इस आघात को सहन कर सकें..कि वे भी कभी बत्ती लगाते थे ।
एक और विचार कौंध रहा है…कई दुकानों में लाल,पीली,नीली
बत्तियां रखी होंगी..अब ये किसी भी काम की नहीं..जैसे पिछले दिनों मानक के अनुरूप नहीं होने पर दो पहिया वाहनों को काफी सस्ते दामों में बेचा गया,उसी तरह दुकानदार भी चाहें तो डेड स्टाक सस्ते दामों में या ये कहें मिट्टी के भाव बेच सकते हैं.. लेकिन उन अधिकारियों और नेताओं के बारे में सोचकर मेरा मन भर आता है,जिन्होंने अपने हाथों से अपने जिगर का टुकड़ा( जो उनकी शान बढ़ाता था…..) निकालकर घर के किसी कोने में फेंक दिया होगा….मेरी एक सलाह है… जिस तरह स्मृति चिन्ह को करीने से सजाकर रखते हैं,ठीक उसी तरह सजाकर इसे रखें तो यह स्वर्णिम दिनों की याद दिलाता रहेगा…हम भी कभी लाल–पीली बत्ती के वाहनों में चलते थे और दुनिया हमें
सलाम ठोंकती थी..घर के ड्राईंग रूम में लाल बत्ती को भी अच्छा लगेगा कि,
साहब ने बुरे दिन में भी उसे याद रखा और अपने घर में इज्जत के साथ
रखा…. फिर यह बात भी खरी उतरेगी कि इज्जत उसी को मिलती है जो दूसरों को इज्जत देता है….लाल पीली बत्ती को भी इज्जत देने का वक्त आ गया है …
हमारा देश रायचन्दों यानि मुफ्त में सलाह देने वालों से भरा पड़ा है.. मेरा
भी मन कर रहा है एक और सलाह दे ही डालूं..वह यह कि, क्यों न इन लाल पीली बत्तियों का एक राष्ट्रीय संग्रहालय बना दिया जाए,जहां श्रेणी के अनुसार दीर्घा बनाकर बत्तियां सजाकर प्रदर्शित की जाएं..या फिर जिस तरह बड़े नामी-गिरामी खिलाड़ियों के बल्ले,टोपी,जरसी आदि की नीलामी की जाती है,
उसी तरह लाल पीली बत्तियों की भी नीलामी की जाए तो…मजा आ जाए गा..
खरीदने वाला कहेगा…इस लाल बत्ती का उपयोग फलां-फलां नेताओं-
अधिकारियों ने किया है…हे ईश्वर…. ऐसा विचार मेरे मन में आया ही
क्यों… करना ….आमीन.
          #मधुकर पवार

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।