मिले जब गैरो से प्यार,
और अपने समझे हमे परायें।
स्थिति ऐसी में हम,
समझे किसे अपना।
जब अपने ही अपनो को,
लौटे जा रहे हो ।
फिर भी अपना एहसान, वो जताए जा रहे हो।
ऐसे लोगो को अपना कहना,
बहुत बड़ी भूल होगी जी।।
परायें तो परायें है,
फिर भी इंसानियत दिखाते है।
पर अपने सदा अपनो को, बड़े ही प्यार से डसते है।
और फिर भी अपनापन,
हमें कहकर जताते है।
और इंसानियत का फर्ज,
सदा ही गैर निभाते है।।
कैसे समझे परिभाषा,
अपने और परायों कि।
समझ मे कुछ नही आता,
करे कैसे मूल्यांकन हम इनका।
लोगो की करनी और कहनी में,
बहुत ही अंतर होता है।
सदा ही देखकर चेहरा,
वो मूल्यांकन जो करते है।
और जमाने की सच्चाई को,
हमेशा ही छुपाते है।।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।