रामलला को जन्म स्थान मिला, मस्जिद के लिए जमीन!

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देर से ही सही लेकिन रामजन्म भूमि- बाबरी मस्जिद मामले में सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजो ने एक राय होकर अपने फैंसले में रामलला को उसका जन्म स्थान और मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन देने के आदेश देकर इस विवाद का स्थायी समाधान करने की कोशिश की है।
जिससेअयोध्या का यह बहुचर्चित विवाद खत्म हो गया ।सर्वोच्च न्यायालय ने निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावे निरस्त कर दिये है और विवादित जमीन पर राम जन्म भूमि न्यास का हक़ घोषित किया है ,न्यायालय ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने को 5 एकड़ जमीन अयोध्या में ही देने का आदेश केंद्र सरकार को दिया है ,और राम मंदिर का निर्माण करने के लिए ट्रस्ट बनाने का आदेश भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया है I
सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि विवादित जमीन पर मंदिर रहा था, लेकिन ऐसे कोई प्रमाण नहीं है कि मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाई गई हो साथ ही न्यायालय ने कहा कि विवादित जमीन पर अंग्रेजों के जमाने से हिन्दू पूजा करते थे और साथ ही नमाज भी पढी जाती थी ।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि विवादित जमीन पर रामजन्मभूमि न्यास का हक है. जबकि मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन किसी दूसरी जगह दी जाएगी. यानी सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही दूसरी जगह जमीन देने का आदेश दिया है.
न्यायालय ने फैसले में कहा कि मुस्लिम पक्ष जमीन पर दावा साबित करने में नाकाम रहा है. न्यायालय ने फैसले में कहा कि आस्था के आधार पर जमीन का मालिकाना हक नहीं दिया जा सकता. साथ ही न्यायालय ने साफ कहा कि फैसला कानून के आधार पर ही दिया गया है। इसके अलावा न्यायालय ने पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट के आधार पर अपने फैसले में कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की भी पुख्ता जानकारी नही मिल पाई है। इसके अलावा न्यायालय ने सरकार को 3 महीने के अन्दर राम जन्म भूमि के लिए एक ट्रस्ट बनाने के निर्देश जारी किये हैं. इस मामले में मुस्लिम पक्ष की तरफ से पैरवी कर रहे वकील जफ़रयाब जिलानी ने कहा कि इस फैसले से वह निराश हैं लेकिन फैसले का सम्मान करते हैं.
आपको बता दे कि कुछ हिंदू संगठनों ने सन1813 में पहली बार बाबरी मस्जिद पर राम लला का स्थान होने दावा किया था। उनका दावा है कि अयोध्या में राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी। इसके 72 साल बाद यह मामला पहली बार किसी अदालत में पहुंचा। महंत रघुबर दास ने सन1885 में राम चबूतरे पर छतरी लगाने की याचिका लगाई थी, जिसे फैजाबाद की जिला अदालत ने ठुकरा दिया था। 134 साल से तीन अदालतों में इस विवाद से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा था। अयोध्या का संबंध राम के आख्यान और सूर्यवंश से है।
जहीर उद-दीन मोहम्मद बाबर पानीपत के पहले युद्ध में इब्राहिम लोदीको हराकर भारत आया था। उसके कहने पर एक सूबेदार मीर बाकी ने सन1528 में अयोध्या में मस्जिद बनाई। इसे बाबरी मस्जिद नाम दिया गया। कुछ इतिहासकारों का यह भीमानना है कि इब्राहिम लोदीके शासनकाल (सन1517-23 ईस्वी) में ही मस्जिद बन गई थी। इसे लेकर मस्जिद में एक शिलालेख भी था, जिसका जिक्र एक ब्रिटिश अफसर ए फ्यूहरर ने कई जगह किया है। फ्यूहरर के मुताबिक, सन1889 तक यह शिलालेख बाबरी मस्जिद में था,ऐसा कहा जाता है।
सन1813 में पहली बार हिंदू संगठनों ने दावा किया कि बाबर ने सन1528 में राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई। फैजाबाद के अंग्रेज अधिकारियों ने मस्जिद में हिंदू मंदिर जैसी कलाकृतियां मिलने का जिक्र अपनी रिपोर्ट में किया था। पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल ने अपनी किताब ‘अयोध्या रीविजिटेड’ में लिखा है कि सन1813 में मस्जिद की शिलालेख के साथ जब छेड़छाड़ हुई, तब से यह कहा जाने लगा कि मीर बाकी ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाई। कुणाल ने अपनी किताब में लिखा है कि मंदिर 1528 में नहीं तोड़ा गया, बल्कि औरंगजेब द्वारा नियुक्त फिदायी खान ने 1660 में उसे तोड़ा था।
हिंदुओं के दावे के बाद से विवादित जमीन पर नमाज के साथ-साथ पूजा भी होने लगी। सन1853 में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के समय पहली बार अयोध्या में साम्प्रदायिक हिंसा भड़की। इसके बाद भी सन1855 तक दोनों पक्ष एक ही स्थान पर पूजा और नमाज अदा करते रहे। सन1855 के बाद मुस्लिमों को मस्जिद में प्रवेश की इजाजत मिली, लेकिन हिंदुओं को अंदर जाने की मनाही थी। ऐसे में हिंदुओं ने मस्जिद के मुख्य गुम्बद से 150 फीट दूर बनाए गए राम चबूतरे पर पूजा शुरू की। सन1859 में ब्रिटिश सरकार ने विवादित जगह पर तार की बाड़ लगवाई। सन1855 से सन1885 तक फैजाबाद के अंग्रेज अफसरों के रिकॉर्ड में मुस्लिमों द्वारा विवादित जमीन पर हिंदुओं की गतिविधियां बढ़ने की कई शिकायतें मिली हैं।
सन1885 : पहली बार मामले को न्यायालय में उठाया गया। फैजाबाद की जिला अदालत में महंत रघुबर दास ने राम चबूतरे पर छतरी लगाने की अर्जी लगाई, जिसे ठुकरा दिया गया।
सन1934 : अयोध्या में दंगे भड़के। बाबरी मस्जिद का कुछ हिस्सा तोड़ दिया गया। विवादित स्थल पर नमाज बंद हुई।
सन1949 : मुस्लिम पक्ष का दावा है कि बाबरी मस्जिद में केंद्रीय गुम्बद के नीचे हिंदुओं ने रामलला की मूर्ति स्थापित कर दी। इसके 7 दिन बाद ही फैजाबाद कोर्ट ने बाबरी मस्जिद को विवादित भूमि घोषित किया और इसके मुख्य दरवाजे पर ताला लगा दिया गया।
सन1950 : हिंदू महासभा के वकील गोपाल विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में अर्जी दाखिल कर रामलला की मूर्ति की पूजा का अधिकार देने की मांग की।
सन1959 : निर्मोही अखाड़े ने विवादित स्थल पर मालिकाना हक जताया।
सन1961 : सुन्नी वक्फ बोर्ड (सेंट्रल) ने मूर्ति स्थापित किए जाने के खिलाफ कोर्ट में अर्जी लगाई और मस्जिद व आसपास की जमीन पर अपना हक जताया।
सन1986 : फैजाबाद कोर्ट ने बाबरी मस्जिद का ताला खोलने का आदेश दिया।
सन1987 : फैजाबाद जिला अदालत से पूरा मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट को ट्रांसफर कर दिया गया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में 23 साल सुनवाई के बाद फैंसलाआया ।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सन1989 में विवादित स्थल पर यथास्थिति बरकरार रखने को कहा। इस बीच सन1992 में हजारों की संख्या में कारसेवकों ने अयोध्या पहुंचकर विवादित ढांचा ढहा दिया। इस मामले पर अलग से सुनवाई चल रही है। 10 साल बाद यानी सन2002 से इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित ढांचे वाली जमीन के मालिकाना हक को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की और सन2010 में इस पर फैसला सुनाया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2:1 के अंतर से फैसला दिया और विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच तीन हिस्सों में बराबर बांट दिया।
सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक रूप से लगातार 40 दिन सुनवाई की सन2011 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सन2018 में इस विवाद से जुड़ी सभी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। 6 अगस्त 2019 से सुप्रीम कोर्ट में इस विवाद पर लगातार 40 दिन तक सुनवाई हुई। 16 अक्टूबर 2019 को हिंदू-मुस्लिम पक्ष की दलीलें सुनने के बाद पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था ,जिसका निर्णय 9 नवम्बर को पांच जजो ने एक राय होकर दिया है।जिसे पूरी तरह सन्तुलित निर्णय कहा जा सकता है।
#डॉ श्रीगोपाल नारसन

#श्रीगोपाल नारसन

परिचय: गोपाल नारसन की जन्मतिथि-२८ मई १९६४ हैl आपका निवास जनपद हरिद्वार(उत्तराखंड राज्य) स्थित गणेशपुर रुड़की के गीतांजलि विहार में हैl आपने कला व विधि में स्नातक के साथ ही पत्रकारिता की शिक्षा भी ली है,तो डिप्लोमा,विद्या वाचस्पति मानद सहित विद्यासागर मानद भी हासिल है। वकालत आपका व्यवसाय है और राज्य उपभोक्ता आयोग से जुड़े हुए हैंl लेखन के चलते आपकी हिन्दी में प्रकाशित पुस्तकें १२-नया विकास,चैक पोस्ट, मीडिया को फांसी दो,प्रवास और तिनका-तिनका संघर्ष आदि हैंl कुछ किताबें प्रकाशन की प्रक्रिया में हैंl सेवाकार्य में ख़ास तौर से उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए २५ वर्ष से उपभोक्ता जागरूकता अभियान जारी है,जिसके तहत विभिन्न शिक्षण संस्थाओं व विधिक सेवा प्राधिकरण के शिविरों में निःशुल्क रूप से उपभोक्ता कानून की जानकारी देते हैंl आपने चरित्र निर्माण शिविरों का वर्षों तक संचालन किया है तो,पत्रकारिता के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों व अंधविश्वास के विरूद्ध लेखन के साथ-साथ साक्षरता,शिक्षा व समग्र विकास का चिंतन लेखन भी जारी हैl राज्य स्तर पर मास्टर खिलाड़ी के रुप में पैदल चाल में २००३ में स्वर्ण पदक विजेता,दौड़ में कांस्य पदक तथा नेशनल मास्टर एथलीट चैम्पियनशिप सहित नेशनल स्वीमिंग चैम्पियनशिप में भी भागीदारी रही है। श्री नारसन को सम्मान के रूप में राष्ट्रीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा डॉ.आम्बेडकर नेशनल फैलोशिप,प्रेरक व्यक्तित्व सम्मान के साथ भी विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ भागलपुर(बिहार) द्वारा भारत गौरव

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