शांतिनिकेतन यात्रा संस्मरण भाग 3

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कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर शिक्षा व्यवस्था में व्यापक बदलाव की जरूरत महसूस करते थे। उनके मन में एक ऐसे संस्थान की परिकल्पना थी जहां शिक्षा का मतलब केवल किताबों में सिमटना न हो। वे चाहते थे बच्चे बंद कमरों से बाहर निकलकर प्रकृति के साथ जुड़ना सीखें।

कहीं उन्होंने लिखा भी है…’वास्तव में पुस्तकों द्वारा ज्ञान प्राप्त करना हमारे मन का प्राकृतिक धर्म नहीं है…वस्तु को सामने देख सुनकर उसे हिला घुमाकर अपनी आंखों से देखभाल तथा जांच करके ही आविष्कृत ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।’

शांतिनिकेतन की स्थापना के साथ उन्हें इस परिकल्पना को साकार रूप देने का अवसर मिला। उन्होंने शांतिनिकेतन के अंदर ऐसे वातावरण का सृजन किया जिसमें शिक्षक और विद्यार्थी के बीच कोई दूरी न हो। सब एक साथ मिलकर काम कर सकें।

1901 में उन्होंने शांतिनिकेतन में एक छोटे से विद्यालय की स्थापना की। 1919 में उन्होंने विशेष रूप से कला के एक विद्यालय ‘कला भवन’ की नींव रखी जो आगे 1921 में स्थापित विश्वभारती विश्वविद्यालय का हिस्सा बना। इस ‘कला भवन’ में कला प्रशिक्षण की एक अलग पद्धति अपनायी गई। यह पद्धति दरअसल कला को प्रकृति के साथ जोड़ने का एक अनुपम प्रयोग है। बंद कमरे या स्टूडियो में बैठ कर चित्रकारी करने के बजाय यहां शिक्षार्थी हरे भरे पेड़ों के नीचे पंछियों के गान के साथ प्रकृति का अवलोकन करते हुए चित्र उकेरते हैं।

शिक्षा के साथ व्यक्तित्व निर्माण के लिए विश्वभारती में
‘कला भवन’ के साथ ‘संगीत भवन’, ‘शिक्षा भवन’ (कॉलेज) एवं ‘विद्या भवन’ (रिसर्च विभाग) भी बने। आगे चलकर हिंदी के उच्चतर अध्ययन एवं शोध के लिए ‘हिंदी भवन’ भी विश्वभारती का हिस्सा बना। चीनी भाषा के अध्ययन के लिए ‘चीना भवन’ एवं देश विदेश के धार्मिक विचारों के अध्ययन के लिए ‘दीनबंधु भवन’ का भी निर्माण हुआ…

क्रमशः

#डा. स्वयंभू शलभ

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।