मेरे संग बेटी भी धूप में तपी हैं
तब जाकर यह दीपक बनें है ।
संस्कृति को हम जिंदा रखें हुए
अपनी माटी से जो बंधे हुए है ।।
किंतु आज होता हमें बहुत दर्द
बिजली के दीप जब जलाते है ।
पूंजी शत्रु देश चीन को देकर
दीवाली हम शान से मनाते हैं ।।
घर – घर उजियारा की चाह में
दिन-रात हो जाती हैं,दीप बनाने में ।
ओर लोग तरस भी नही खातें है
चायना के दिखावटी दीप जलाने में ।।
भारतीय दीपों में अपनापन समाया
पुराणों ने भी इसको श्रेष्ठ बताया है ।
चूल्हा जल जाएं घर इनके,दुआ देगें
खरीद लें हम सारे दीप,इनके भी बच्चे है ।।
#गोपाल कौशल
परिचय : गोपाल कौशल नागदा जिला धार (मध्यप्रदेश) में रहते हैं और रोज एक नई कविता लिखने की आदत बना रखी है।