ऐ री सखी इस तापमान में,मैं तो अपनी सुध-बुध भूली,
माज़ा अब है प्यास बुझाती,आम की अमरैय्या भूली।
स्विमिंग पूल में गोते लगाती,पोखर ताल तलैय्या भूली,
एसी की मोहे भावे ठंडक,बड़ पीपल की छैयां भूली।
लिम्का,सोडा,कोला प्यारा,छाछ और जलजीरा भूली,
बंद बोतल का ठंडा पानी,मटके का सोंधापन भूली।
ऐ री सखी इस तापमान में,मैं तो अपना बचपन भूली,
ऐ री सखी इस तापमान में,मैं तो अपनी सुध-बुध भूली..।।
#शशांक दुबे
परिचय : शशांक दुबे पेशे से उप अभियंता (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना), छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश में पदस्थ है| साथ ही विगत वर्षों से कविता लेखन में भी सक्रिय है |