वर्त्तमान समय में जिस तरह से हिंदी भाषा के उठान के लिए सोशल मिडिया ने जो कार्य किये है वो बहुत ही सराहनीय है / जिसके कारण आज सरे विश्व में हिंदी भाषा को सराहा जा रहा है। भारतीय संस्कृति का मूल आधार है हमारे देश की भाषा/ आज देश में भिन्न भिन्न भाषाएँ और जाते के लोग है जो अपने अपने स्टार पर अपनी संस्कृति और अपनी भाषा को अपनाते है/ ये सब होते हुए भी भारतीय संस्कृति हिंदी भाषा पर आधारित है / हिंदी भाषा हमारी मृातभाषा है और हम हिंदुस्तानियों के शरीर मे खून की तरह से समाई हुई है। भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां पर सदियों से हिंद भाषा का बोलबाला रहा है। बीच मे जब देश गुलाम हुआ तब अंग्रेजो ने हिंदी का अफमान किया और अपनी भाषा को भारत देश के ऊपर थोप दी परन्तु फिर भी वो लोग हिंदी भाषा का बोलबाला को ख़त्म नहीं कर सके थे ।
जब हम लोगो अपनी आजादी की लड़ाई की तैयारी कर रहे थे तब सभी जाति समूह के लोग अपनी बातें हिंदी में ही रखते थे। परन्तु आजादी के बाद चंद स्वार्थी लोगो ने अपने आप को विध्दामान सिद्ध करने के लिए अंग्रेजी को बढ़ावा दिया। हम सब अंग्रेजी भाषा की ओर वहाने लगे। समय ने एक बार फिर करवट ली और पुनः हम लोग अपनी मृातभाषा की ओर वापिस हुए। इस कार्य मे सबसे बड़ा योगदान हमारे देश के लेखक और विध्दामान लोगो का रहा जिनके अथक प्रयासों से हम लोगो हिंदी भाषा को अपनी राष्ट्रीय भाषा बनवा सके, और फिर इस भाषा को और बढ़ावा देश के नाटक मंडलियों और चित्र पट और छोटे छोटे नुकड़ सभाओ को जाता है, जिन्होंने हिंदी भाषा को अपनाकर इससे अपने कार्यशैली में शामिल किया। 80 के दसक आते आते हिन्द भाषा हर किसी के जुबान पर आने लगी और सभी लोग हिंदी को अपनाने लगे, चाहे वो किसी भी भाषा का ज्ञाता क्यो न हो हिंदी बोले और सुनने के लिए आतुर हो उठा। इसका श्रेय उन गीतकार और संगीतकार और लेखकों को देना चाहूंगा जिन्होंने हर किसी की जुबा पर हिंदी के गीत गुन गुनाने के लिए मजबूर कर दिया। रेडियो स्टेशन से अनेक कार्यक्रम जैसे कृषि से संबंधित महिलाओ से संबंधित और मनोरंजन आदि के लिए प्रसारण किये जाने लगे और जिसके कारण भी हिंदी भाषा का बोलबाला हमारे देश मे बढ़ाने लगा। आप देख सकते है कि कितने गायक कर्नाटका बंगाल और भी अनेक भाषाओं के होने के बाद गीत हिंदी में गाते थे और उन्होंने अपनी आवाज़ से भी हर दिलो में हिंदी को जगह दिखाई। समय आगे बढ़ा और विज्ञान ने भी तरक्की की और दूरदर्शन आ गया और जो कार्यक्रम हम लोग रेडियो स्टेशन के माध्यम से सुनते थे वो अब चल चित्रो के माध्यम से हिंदी में देखने और समाझ्ने लगे। और देश के साथ विदेशी सोशल मीडिया भी अपनी लोकप्रियता बढ़ाने और अपने कार्यक्रमो को जन जन तक पहुंचने ले लिए हिंदी भाषा का ज्यादा से ज्यादा उपयोग अपने हर कार्यक्रमो में करने लगा ।नतीजा यह हुआ कि हिंदी भाषा हमारे देश के साथ विदेशियों की जुबान पर आने लगी और विदेशी लोग हिंदी पड़ने आदि के लिए हमारे यहां के विधायलायो में आने लगी। जब कोई भी हिंदी भाषा का जिक्र विदेशो में करता है तो हमारे देश का गौरव बढ़ाता है। आ. अटल जी देश के एक मात्र ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने सर्व प्रथम अपने देश की भाषा मे विदेशो के मंच से सभी विश्व के देशों को हिंदी में संबोधन किया था। और एक कीर्तिमान बनाया था ।
आज तो लगभग 90% कार्यक्रम टेलीविजन या सिनेमाओं या रेडियो स्टेशन आदि से हिंदी में ही प्रसारित होते है।
अतः हम कह सकते है कि सोशल मीडिया का हिंदी भाषा को उच्च स्थान दिलाने में बहुत बड़ा योगदान है।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।