हाथों में हाथ थामे, साथ मेरे तुम चलना ।
मेरे जीवन के आंगन में, सांझ जैसी ढलना ।।
उम्मीदों का सहर हो मेरी, तुम ही उजाला करना ।
बारिशों का पानी बनकर, यूं ही तर-बतर करना ।।
अच्छा लगता है मुझको यूं खुद से बातें करना ।
याद में तेरी जानें जां ,अब यूं जगराते करना ।।
ख़ुशबू बनकर सांसों में तुम बसना और बिखरना।
मेरे लिए तुम हर शब जानम सजना और संवरना ।।
डॉ.वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए कियाहुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।