सुना और पढ़ा तो यही था कि लोग देवताओं, ईश्वर, पीर, फ़क़ीर, मंदिर, मस्जिद, दरगाह, देश की खिदमत करते है, उनकी सेवा करके जीवन में अद्भुत होने का परिचय देते है, पर अनोखी बात तो यह है कि कोई पत्रकार के रूप में बाद में बने पहले वो ‘प्रगति पुस्तक भंडार’ से पुस्तकों के खादिम बन गए।
वास्ता यही कोई 9-10 साल पहले से हुआ था, मेरे पत्रकारिता के मार्गदर्शक प.विजय अड़ीचवाल जी ने मेरे पुस्तक पढ़ने के शौक के चलते मेरा परिचय अतुल लागू जी से करवाया, पहली मुलाकात में ही लागू जी ने किताबों की दुनिया की सरसरी सैर करवा दी, कई ऐसी पुस्तकें जो अन्य पुस्तकालयों में भी अनुपलब्ध रही उनसे लागू जी ने भेंट करवाई, हमेशा हँसी-मजाकिया लहजे में गंभीरता का रस घोलने वाले लागू जी को सारस्वत्य सेवा का जो अनूठा आशीष मिला वो निश्चित तौर पर काबिल ए तारीफ ही है।
प्रेस क्लब उनका आना-जाना लगा रहता था, जब भी मिलते मुझसे तो हमेशा किसी नई किताब की चर्चा करते, विगत 3 माह पहले ही मैंने उनसे कहकर अमृता प्रीतम जी की एक किताब ‘मन मिर्जा-तन साहिबा’ बुलवाई थी, मैंने जब राशि देना चाही तब वो ये कह गए ‘बेटा ! इसकी राशि नहीं चाहिए, मेरे पास 3 प्रति है इसकी, इसलिए ये तो मेरी तरफ से उपहार रख’
मैंने कहा भी कि ‘दादा ,मैं पढ़ कर लौटा दूँगा, आप किसी अन्य को पढ़ने के लिए दे दीजिएगा।’ वो ये कहते रह गए कि ‘अब कहाँ पढ़ते है ये किताबें लोग….!’
बातें बहुत-सी है , और क़िस्सागोई भी।
विगत कई दिनों से वे अस्वस्थ्य थे, फेसबुक ,व्हाट्सएप्प आदि पर उनके बेहतर स्वास्थ्य के लिए दुआएं भी चल रही थी पर ये मालूम नहीं था कि आज ही अलसाई सुबह ये समाचार मिलेगा कि लागू जी हमे अलविदा कह जाएंगे।
*अब न मन मिर्जा रहेगा न तन साहिबा….*
इंदौर की पत्रकारिता में अपनी हँसमुख छवि से सफेद रंग की एक्टिवा को अपना अश्व मान कर सदा आयोजनों आदि में शिरकत करने वाले लागू जी सचमुच पुस्तकों के खादिम ही थे, जिनकी साफ़गोई से हर कोई प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था।
मूलतः मराठी भाषी होने के उपरांत भी हिन्दी के प्रति उनकी निष्ठा अद्भुत थी। यही बात उनका कायल बनाने के लिए पर्याप्त थी।
ईश्वर ने यदि उन्हें अपने पास बुलाया है तो जरूर ईश्वर के ग्रंथागार का सभापति ही बनाने के लिए उन्हें आमंत्रित किया होगा…
*है परमात्मा ! इस शुभ्रा के खादिम को अपने श्री चरणों में स्थान देते हुए अपने अलौकिक संसार में फिर किताबों और ग्रंथों से जोड़ देना आप….*
पुनश्चय अश्रुपूरित श्रद्धांजलि सहित…..
लागू जी को नमन ,वंदन
*डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’*
हिन्दीग्राम, इंदौर