दरकते रिश्ते

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हाय सौरभ कैसे हो,कैसा रहा तुम्हारा वेलेंटाइन्स डे.नीति को तुम्हारा दिया तोहफा पसन्द आया कि नहीं?प्रिया की बात सुनकर सौरभ बड़े उखड़े से अन्दाज़ में बोला मुझे क्या होना था ठीक हूँ और वेलेंटाइन्स डे तो मेरे लिए बहुत ख़ास रहा.ताउम्र याद रखूँगा.प्रिया उसके बोलने के अन्दाज़ से समझ गयी कि कुछ गड़बड़ ज़रूर है और सौरभ से बोली कि पहेलियाँ तो बुझाओ मत ठीक से बताओ क्या बात है.सौरभ बोला अभी मैं जल्दी में हूँ लंच में मिलकर बात करेंगे ये कहकर वो ऑफिस के अन्दर चला गया.आज प्रिया का टाइम काटे नहीं कट रहा था वो सौरभ के खराब मूड को देखकर परेशान हो गई थी क्योंकि सौरभ के लिए उसके दिल में कहीं ना कहीं साॅफ्ट
 कार्नर था.लंच होते ही वो सौरभ का बेसब्री से इन्तज़ार करने लगी.थोड़ी देर बाद सौरभ अपने रुम से निकला तो वो उसकी ओर बढ़ी और फिर दोनों कैन्टीन की ओर चल दिये.प्रिया ने अपने और सौरभ के लिए डोसा ऑर्डर किया.सौरभ बिल्कुल चुपचाप बैठा हुआ था.उसे चुप देखकर प्रिया बोली अरे कुछ बोलोगे भी या नहीं.तभी डोसा आ गया तो सौरभ बोला बातें बाद में पहले खा लो .डोसा ठंडा हो जायेगा तो फिर मज़ा भी नहीं आयेगा.डोसा खा लेने के बाद जल्दी से बिल भी प्रिया ने ही अदा किया तो सौरभ गुस्से से बोला ये क्या बात हुई?प्रिया बोली क्यों क्या मैं इस काबिल नहीं?सौरभ बोला ये बात नहीं पर अमूमन लड़कियाँ बिल अदा नहीं करतीं जब अपने दोस्त के साथ हों.प्रिया बोली मेरे हलक में तो मुफ्त की चीज़ चलती नहीं है.मैं इस मामले में ज़रा हटके हूँ.अच्छा ये फिज़ूल की बात छोड़ो मुझे ये बताओ तुम्हारा मूड क्यों खराब है?सौरभ बोला मूड तो कल खराब था अब तो रिलैक्स फील कर रहा हूँ.दरअसल कल नीति से मेरा ब्रेेकअप हो गया है.प्रिया ने हैरान होकर पूछा ऐसा क्या हो गया था जो बात ब्रेकअप तक आ गई.सौरभ बोला हुआ यूँ कि कल मैंने नीति को शाम छः बजे ऑफिस के बाहर ही बुला लिया था और उसके साथ कैफे जाकर वेलेन्टाइन्स डे सेलिब्रेट करना चाहता था और साथ ही साथ अपने प्रमोशन की खुशखबरी भी देना चाहता था पर नीति कैफे चलने को बिल्कुल भी तैयार नहीं हुई और होटल ताज चलने की ही जि़द करने लगी.कहने लगी कि कैफे में तो बिल्कुल नहीं जाऊँगी वो तो मेरे हिसाब से बिलो स्टैंडर्ड है और अगर उस कैफे की तुम्हारे संग फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट करूँगी तो मेरे फ्रेंड्स कितना मज़ाक उड़ायेंगे मेरा कि वेलेन्टाइन्स डे के लिए क्या जगह चुनी है.और मुझसे बोली कि अब मुझे ये नसीहत मत देना कि सोशल मीडिया पर ये सब बताना कोई ज़रूरी नहीं.मेरे लिए तो अपने फ्रेंड्स में धाक जमाने का बढ़िया ज़रिया है.मैं अपनी नाक नहीं कटा सकती कैफे जाकर.सौरभ बोला मैंने उससे कहा कि तुम्हारे लिए दोस्तों के बीच शेखी बघारना ज़्यादा ज़रूरी है या मेरे साथ टाइम स्पैन्ड करना.अब तो कैफे ही चलेंगे ऐसा मज़ाक करते हुए मैंने नीति से कहा.मेरी बात सुनते ही वो बिफर गयी और रास्ते में ही ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी कि साफ साफ कह क्यों नहीं देते कि तुम्हारी औकात ताज ले जाने की है ही नहीं.उसने मुझे उलाहना भी दिया कि मुझसे अच्छा तो अभिषेक ही था जो उसकी हर बात मान लेता था और अब तो वो मुझसे ज़्यादा भी कमाने लगा है.नीति ने मुझसे कहा कि वो ही बेवकूफ थी जो मेरे चक्कर में अभिषेक को छोड़ दिया.सौरभ बोला मैंने भी उससे गुस्से में कह दिया कि अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है.मेरी बात सुनकर वो बोली हाँ-हाँ मुझे भी तुम जैसे टटपूँजिये से कोई मतलब नहीं रखना ,लड़कों की कोई कमी नहीं है मेरे लिए तुमसे लाख दर्जे बेहतर मिल जायेंगे और मेरी फरमाईशों को भी पूरा कर देंगे और ये कहकर दनदनाती हुई वापिस चली गई.सौरभ प्रिया से बोला ले जाने को मैं उसे ताज भी ले जा सकता था कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन एक तो वहाँ जाने में ही काफी टाइम लग जाता दूसरे क्या कभी वो मेरी बात मानेगी ही नहीं.मेरे से ज़्यादा ज़रूरी उसके लिए सोशल मीडिया और उसके दोस्त हो गये.सौरभ आगे बोला कल उसका बनावटीपन खुलकर सामने आ गया.कल मुझे समझ आया कि उसे एक ऐसा इन्सान चाहिए जो उसका हुक्म बजाता रहे उसे मेरी फीलिंग्स से कोई लेना-देना ही नहीं था.अच्छा हुआ समय रहते उसका असली रूप सामने आ गया वरना एक दिन मैं ही उपहास का केंद्र बन जाता.कल को अगर उसके साथ शादी के बाद मेरा डिमोशन हो जाता या मेरी नौकरी पर ही आँच आ जाती तो फिर वो मुझे छोड़कर किसी और को ढूँढ़ लेती जैसे कल ही मुझे अभिषेक का हवाला दे रही थी.सौरभ की बातें सुनकर प्रिया बोली तुम उसे अपने प्रमोशन की बात बता देते और जो कीमती गिफ्ट लेकर गये थे अगर वो दे देते तो शायद ब्रेकअप ना होता.सौरभ बोला मुझे ऐसी लड़की चाहिए जो मुझे समझे ना कि मेरे से ज़्यादा पद और पैसों को तवज्जो दे.सौरभ प्रिया से बोला तुम इस तरह कभी किसी का दिल मत दुखाना और ये कहकर चल दिया.प्रिया सौरभ के घायल दिल पर मरहम लगाना चाहती थी पर संकोचवश कुछ कह ना सकी और बस उसे जाते हुए अपलक देखती रही|
#वन्दना भटनागर

matruadmin

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।