Read Time37 Second

लाख ग़म है फिर भी मुस्कुराकर जीता है
कोई दिवाना हंसकर जख्मो को सीता है।
आईने में देखा है ईश्क में टुटा हुवा बशर
किस तरह ज़िंदगी वो मर-मरकर जीता है।
न जाने क्यु दुश्मन है जमाना मोहब्बत का
मोहब्बत का तो पैगाम देते कुरान- गीता है।
लाख नफरतें है मगर ये भी सच है *अश्क*
दिल में किसी का प्यार लिये हर कोई जीता है।
संजय अश्कपुलपुट्टा,बालाघाट
Post Views:
474