भारतीय संसद में इन दिनों प्रस्तावित शिक्षा नीति को लेकर चर्चा चली तो नीति बनने से पहले ही हिंदी थोपने का मिथ्या आरोप गढ़कर हिंदी का विरोध होना भी शुरू हो गया।जिस पर केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री डॉ रमेश पोखियाल निशंक को यह तक कहना पड़ा कि हिंदी किसी पर थोपी नही जाएगी।लेकिन सवाल उठता है कि हिंदी थोप कौन रहा है?हिंदुस्तान में हिंदी नही अपनाई जाएगी तो कहां हिंदी का वजूद रह पाएगा वह भी तब जब दुनिया के अन्य देश हिन्दीमय होने के लिए लालायित हो।आज जापान, जर्मनी,आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, अमेरिका, अरब अमीरात जैसे देशों में हिंदी का डंका सिर चढ़कर बज रहा है।ज्यादर देश हिंदी को बेहतर कैरियर के रूप में अपना रहे है तो कुछ भारत से व्यापारिक लाभ के लिए भी हिंदी की शरण ले रहे है।ऐसे में अपने ही देश की संसद में जब तमिलनाडु व तेलंगाना के कुछ सांसद हिंदी को लेकर विरोध और हो हल्ला करते है तो उनकी सोच पर हमें शर्म आनी लगती है।लेकिन हैरत की बात यह भी है कि इस विरोध का कोई प्रतिवाद नही होता।हिंदी के नाम पर रोटियां खाने वाले भी चुप्पी साधे रहते है।उत्तर भारत से भी हिंदी समर्थन की आवाज का न उठना हिंदी के लिए अफसोस जनक ही है।वास्तव में अब समय आ गया है कि हम हिंदी के लिए उठ खड़े हो ओर हिंदी को उसके वनवास से निजात दिलाकर हिंदी को सम्पूर्ण देश ही नही दुनिया की मुख्य धारा में लाये।हालांकि भारतीय हिंदी सिनेमा का हिंदी को दुनिया भर में पहुंचाने में बहुत बड़ा योगदान है।यानि जो काम हिन्दीवालों को करना चाहिए था वह काम भारत के हिंदी सिनेमा ने किया है।जिसके लिए हमे भारतीय हिंदी सिनेमा के प्रति धन्यवाद ज्ञापित भी करना चाहिए।आज उन हिंदी के पक्षधरों से अपील है ,जो हिंदी के नाम पर खूब यश,समृद्धि और सम्मान पाते रहे हैं,लेकिन संसद में जब नई शिक्षा नीति का मात्र “मसौदा” ही रक्खा गया तो “हिंदी” थोपे जाने का हल्ला मचा-मचा कर आसमान सिर पर उठाने वालों के विरोध में एक शब्द तक हिंदी प्रेमी नहीं बोल पा रहे हैं?जबकि पूरा देश जानता है कि हिंदी ही एक मात्र ऐसी भाषा है जो भारत के दिल मे बसती है और जिसकी स्वीकार्यता भी है।
जाने माने हिंदी विद्वान डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा के शब्दों में, क्या पूरे देश में हिंदी की स्वीकार्यता की सच्चाई को तमिलनाडु के राजनेता भी मना कर सकते हैं? क्या पूरे देश मे शासन की आधारशिला कहे जाने वाले नौकरशाह आई ए एस की परीक्षा पास करने के बाद हिंदीभाषी क्षेत्रों में नौकरी नहीं करते?
क्या यह नंगी सच्चाई नहीं है कि आजादी पहले 15 वर्ष के लिए हिंदी के साथ अंग्रेज़ी का प्रयोग करने की छूट देकर हिंदी के पैरों में बेड़ियाँ नहीं डाली गई थी? फिर इस कालावधि को और बढ़ा कर हिंदी को अपने ही देश मे दासी बना कर अंग्रेज़ी को रानी नहीं क्यो बनाया गया?
कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि स्वतंत्र भारत में आजादी मिलने के इतने समय के बाद भी अगर हिंदी के प्रयोग की बात का कही विरोध होता है या तमिलनाडु के डीएमके नेता स्टालिन और असुद्दीन ओवैसी जैसे लोग हिंदी के विरोध में खड़े हो जाते हैं ,तो यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा।जबकि हिंदी का कोई भी पक्षधर हिंदी के लिए पूरी शिद्दत के साथ खड़ा होने की हिम्मत तक नहीं करता।
मुझे तो लगता है कि हिंदी को हिंदी के पक्षधरों ने ही अपमान सहने के लिए छोड़ दिया है। क्यों नहीं हम सब मिलकर हिंदी के पक्ष में पूरी शिद्दत से खड़े होते? यह प्रश्न आज हिंदी के नाम पर फिल्में बना कर करोड़ो रूपये कमाने वाले अभिनेताओं और निर्माताओं से भी पूछा जाना जरूरी हो गया है।जो फिल्मे तो हिंदी की परोसते है परंतु साक्षात्कार हिंदी के बजाय अंग्रेजी में देते है।
आज जब देवभूमि उत्तराखण्ड के हरिद्वार से निर्वाचित सांसद रमेश पोखरियाल “निशंक” को मोदी सरकार में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री बनाया गया तो हिंदी विरोधी तमिलनाडु के नेताओं को जैसे साँप सूंघ गया हो। उन्हें आपत्ति हुई कि हिंदी के प्रति समर्पित एक हिंदी के रचनाकार को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री क्यों बना दिया गया?
मेरा तो हिंदी भाषी क्षेत्रों के हिंदीप्रेमियों से अनुरोध है कि जब केंद्र सरकार ने स्पष्ट कहा है कि हिंदी के साथ ही सभी भारतीय भाषाओं का विकास किया जाएगा,तब हिंदी का विरोध करने वालों को क्या जवाब नही दिया जाना चाहिए?यदि हां तो फिर आप क्या कर रहे है?जिस भाषा से आपका वजूद है और जिस भाषा से आपका घर चलता है उसके लिए तो कुछ कीजिए।
हिंदी के विरोध का क्या कोई औचित्य है? अगर नही है,तो क्या हमें इस षड्यंत्र के विरुद्ध खड़ा नही होना चाहिए? इन प्रश्नों पर गंभीरता से विचार करने का समय आ गया है,इसलिए चुप्पी तोड़िए और हिंदी की अस्मिता के लिए एकजुट हो जाइए।तभी हिंदी की अस्मिता बच सकती है और हिंदी पूरे देश की भाषा बन सकती है।लेखक विक्रमशिला हिंदी विद्या पीठ भागलपुर, बिहार के उत्तराखंड प्रभारी है।
#श्रीगोपाल नारसन
परिचय: गोपाल नारसन की जन्मतिथि-२८ मई १९६४ हैl आपका निवास जनपद हरिद्वार(उत्तराखंड राज्य) स्थित गणेशपुर रुड़की के गीतांजलि विहार में हैl आपने कला व विधि में स्नातक के साथ ही पत्रकारिता की शिक्षा भी ली है,तो डिप्लोमा,विद्या वाचस्पति मानद सहित विद्यासागर मानद भी हासिल है। वकालत आपका व्यवसाय है और राज्य उपभोक्ता आयोग से जुड़े हुए हैंl लेखन के चलते आपकी हिन्दी में प्रकाशित पुस्तकें १२-नया विकास,चैक पोस्ट, मीडिया को फांसी दो,प्रवास और तिनका-तिनका संघर्ष आदि हैंl कुछ किताबें प्रकाशन की प्रक्रिया में हैंl सेवाकार्य में ख़ास तौर से उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए २५ वर्ष से उपभोक्ता जागरूकता अभियान जारी है,जिसके तहत विभिन्न शिक्षण संस्थाओं व विधिक सेवा प्राधिकरण के शिविरों में निःशुल्क रूप से उपभोक्ता कानून की जानकारी देते हैंl आपने चरित्र निर्माण शिविरों का वर्षों तक संचालन किया है तो,पत्रकारिता के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों व अंधविश्वास के विरूद्ध लेखन के साथ-साथ साक्षरता,शिक्षा व समग्र विकास का चिंतन लेखन भी जारी हैl राज्य स्तर पर मास्टर खिलाड़ी के रुप में पैदल चाल में २००३ में स्वर्ण पदक विजेता,दौड़ में कांस्य पदक तथा नेशनल मास्टर एथलीट चैम्पियनशिप सहित नेशनल स्वीमिंग चैम्पियनशिप में भी भागीदारी रही है। श्री नारसन को सम्मान के रूप में राष्ट्रीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा डॉ.आम्बेडकर नेशनल फैलोशिप,प्रेरक व्यक्तित्व सम्मान के साथ भी विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ भागलपुर(बिहार) द्वारा भारत गौरव