हर दर्दे दिल की दवा नहीं होती,
टूटता है कुछ यूं भी के सदा नहीं होती।
खरीद पाता गुड़िया जो वो उस दुकान से,
रात भर उसकी बेटी यूं रोई नहीं होती ।
उठाता क्यों बूढ़ा रोटी उस कूड़े से,
आग जो भूख ने लगाई नहीं होती।
लुटाती नहीं जो अस्मत वह साहूकार से,
बेटी की उसके घर से विदाई नहीं होती।
#रविंद्र नारोलिया
परिचय : इंदौर(मध्यप्रदेश) के परदेशीपुरा क्षेत्र में रविंद्र नारोलिया रहते हैं। आपका व्यवसाय ग्राफिक्स का है और दैनिक अखबार में भी ग्राफिक्स डिज़ाइनर के रुप में ही कार्यरत हैं। 1971 में जन्मे रविंद्र जी कॊ लेखन के गुण विरासत में मिले हैं,क्योंकि पिता (स्व.)पन्नालाल नारोलिया प्रसिद्ध कथाकार रहे हैं। आप रिश्तों और मौजूदा हालातों पर अच्छी कलम चलाते हैं।
बहुत खूब