मंद-मंद मुस्काती बेटी,
जीवन का सार सबल बेटी..
गंगा-जमुना-सी निर्मल धार,.
झरने-सी,कलकल बेटी।
नव आशा का उज्ज्वल दर्पण,
पलती-पढ़ती बन होनहार.
प्रकृति का उन्मत्त श्रंगार,
मुस्कानों का उद्गम स्थल..
जीवन का सार सबल बेटी,
मंद-मंद मुस्काती बेटी।
बेटे की आस रहा करती,
बेटी फसलों-सी लहलहाती..
अपने कर्तव्यों की सीमा पर,
सारा जीवन दाँव लगा देती..
बेटा तो तरता एक ही कुल,
बेटी दो कुल को पार लगा देती।
फिर गर्भ में पलते जीवन की,
क्यूँ श्वांसें रोकी जाती हैं ?..
आने दो उसको धरती पर,
हक है उसका उसे पाने दो..
जीवन का सार सबल बेटी,
उसको भी खुलकर मुस्काने दो।।
#कार्तिकेय त्रिपाठी
परिचय : कार्तिकेय त्रिपाठी इंदौर(म.प्र.) में गांधीनगर में बसे हुए हैं।१९६५ में जन्मे कार्तिकेय जी कई वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं में काव्य लेखन,खेल लेख,व्यंग्य सहित लघुकथा लिखते रहे हैं। रचनाओं के प्रकाशन सहित कविताओं का आकाशवाणी पर प्रसारण भी हुआ है। आपकी संप्रति शास.विद्यालय में शिक्षक पद पर है।