दिन दयाल उपाध्याय का जन्म धर्म परायण श्रीमती राम प्यारी और भगवती प्रसाद के यहा 25 सितंबर 1916 में हुआ था, ब्रज भूमि मथुरा जिले के नगला चन्द्र भान गांव में दिन दयाल उपाध्याय के प्रपितामह विख्यात ज्योतिषी पंडित हरिराम उपाध्याय थे, दिन दयाल उपाध्याय का बचपन एक सामान्य उत्तर भारतीय निम्न मध्यम वर्ग सनातन हिंदू धर्म के वातावरण में बीता था,
ढाई साल की उम्र में पितृ गृह छूटने के बाद दिन दयाल वापस वहा नहीं लौटे थे, उपाध्याय को बचपन में प्रियज्नो की मृत्यु का घनी भूत अनुभव प्राप्त हुआ था ढाई साल के थे तब ही उनके पिताजी की मृत्यु हो गई थी, सात साल की उम्र में माँ की छाया खो दिया था,
राजस्थान के कोटा में सातवी कक्षा में पढ़ रहे थे तब उनकी मामी जी की मृत्यु हो गई थी, वो रस्ट्रिया स्वयं संघ के साथ जुड़े हुए थे, 1942 से 1945 तक वो संघ के प्रचारक रहे थे, बाल उपन्यास लोक प्रिय हुआ इससे मांग उठी की तरुणो के लिए कुछ लिखना चाहिए तो उन्होने” जगद गुरु शंकराचार्य” नाम से अपना दूसरा उपन्यास लिखा था, भारत विभाजन ने दिन दयाल उपाध्याय को बहुत आहत किया था, उन्होने “अखंड भारत क्यो” नाम की पुस्तक लिखी थी,
दिन दयाल उपाध्याय जी ने भारतीय जन संघ को आकार दिया था, विस्तार और व्यवहार दिया था, भारतीय जन संघ के द्वारा चलाए गए कश्मीर आन्दोलन में हिस्सा लिया और 1953 को डॉ मुखर्जी की बिना अनुमअति कश्मीर में प्रवेश कर के कश्मीर को भारत में विलय करवा देने के लिए सत्याग्रह किया था, दिन दयाल उपाध्याय 20 वी सदी के महानायक थे, भारतीय संस्कृति के उपासक थे, वो दिसम्बर 1951 से 1967 तक भारतीय जन संघ के महा मंत्री एवं अध्यक्ष रहे,
वो मानते थे कि, हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था का केंद्र मानव होना चाहिए, भौतिक उप करण मानव सुख के साधन है, साध्य नहीं, जिस व्यवस्था मे भिन्न रुचि लोक का विचार केवल एक औसत मानव अथवा शरीर, मन, बुद्धि व आत्मा युक्त अनेक एश्नाओसे प्रेरित पुरुषार्थ, चतुराई, पूर्ण मानव के स्थान पर एकांगी मानव का ही विचार किया जाए, वह अधूरी है, हमारा आधार एकात्म मानव हे, जो एकात्म समास्टियो का एक साथ प्रतिनिधित्व करने की क्षमता रखता है, एकात्म मानववाद के आधार पर हमे जीवन की सभी व्यवस्था ओ का विकाश करना होगा!
उनकी मौत 11 फरवरी 1968 को हुआ था, उनकी रहस्य मय मृत्यु से अभी पर्दा नहीं उठा हे, उसकी पूरी जांच होनी चाहिए, वो देश के लिए एक करमठ सेनानी थे!
#गुलाबचन्द पटेल
परिचय : गांधी नगर निवासी गुलाबचन्द पटेल की पहचान कवि,लेखक और अनुवादक के साथ ही गुजरात में नशा मुक्ति अभियान के प्रणेता की भी है। हरि कृपा काव्य संग्रह हिन्दी और गुजराती भाषा में प्रकाशित हुआ है तो,’मौत का मुकाबला’ अनुवादित किया है। आपकी कहानियाँ अनुवादित होने के साथ ही प्रकाशन की प्रक्रिया में है। हिन्दी साहित्य सम्मेलन(प्रयाग)की ओर से हिन्दी साहित्य सम्मेलन में मुंबई,नागपुर और शिलांग में आलेख प्रस्तुत किया है। आपने शिक्षा का माध्यम मातृभाषा एवं राष्ट्रीय विकास में हिन्दी साहित्य की भूमिका विषय पर आलेख भी प्रस्तुत किया है। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय और केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय(दिल्ली)द्वारा आयोजित हिन्दी नव लेखक शिविरों में दार्जिलिंग,पुणे,केरल,हरिद्वार और हैदराबाद में हिस्सा लिया है। हिन्दी के साथ ही आपका गुजराती लेखन भी जारी है। नशा मुक्ति अभियान के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी दवारा भी आपको सम्मानित किया जा चुका है तो,गुजरात की राज्यपाल डॉ. कमला बेनीवाल ने ‘धरती रत्न’ सम्मान दिया है। गुजराती में‘चलो व्यसन मुक्त स्कूल एवं कॉलेज का निर्माण करें’ सहित व्यसन मुक्ति के लिए काफी लिखा है।