पानी

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saket jain

आज पानी के न आने से परेशान जनता को जब अपनी आँखों के सामने देखा तो लगा कि शायद अब ये कहना ज़रूरी है –

पानी बिन जीवन नहीं, यह जीवन आधार ।

फिर भी क्यों समझे नहीं, जनता जल का सार ॥

जनता जल का सार, मान ले जल्दी सुख को ।

वरना जल बिन तड़प, सहेगी प्रतिक्षण दुख को ।

बस इतनी सी बात,समझ कर बन जा ज्ञानी ।

फिर पछताए मीत, मिलेगा कहीं न पानी ।

तो दोस्तो ! पानी सम्हालो, जीवन सम्हारो ।

साकेत जैन शास्त्री ‘सहज’
जयपुर(राजस्थान)

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