प्रकरण 1-आज बेटी के चेहरे पर चोट के निशान देख कुछ शंका हुई। बिना बताए उसके ट्यूशन वाले कमरे में कैमरा लगवाया। अगले दिन देखने पर दंग रह गई कि,ट्यूटर बच्ची को पीट रही थी बेदर्दी से। तुरंत पुलिस बुलाकर ट्यूटर को अंदर कराया और नई तकनीक को धन्यवाद दिया ।
प्रकरण 2-घर में सामान चोरी हो गया तो कैमरे के फुटेज से चोर पकड़ में आ गया।
प्रकरण 3-शिक्षक-कर्मचारी ठीक से काम कर रहे हैं,या नहीं देखने के लिए स्विच ऑन किया तो देखा मैडम मटक-मटक कर फोन पर बतिया रही थी। बच्चे ऊधम मचा रहे थे,दूसरे कमरे के कर्मचारी भी टाइम पास कर रहे थे। तुरंत चेतावनी दी गई,कुछ-कुछ सुधार हुआ ।
दुर्घटना का प्रकरण हो या चोरी का,नज़र रखने की बात हो या सुरक्षा की,घर हो या बाज़ार,मॉल हो या छोटी दुकान निसंदेह नई तकनीक व कईं नई खासियत से सजे सीसीटीवी कैमेरे ने हर जगह हमें सुरक्षा का एक कवच दिया है। हम निश्चिन्त हो गए हैं। हमें लगने लगा है कि,हम सुरक्षित हैं..लेकिन क्या आपने ध्यान दिया है कि,जिस अनुपात में सीसीटीवी कैमरों की खपत बढ़ी है,उसी अनुपात में अपराध भी बढ़े हैं। इसका उलटा भी कह सकते हैं कि,अपराध बढ़े हैं इसलिए सीसीटीवी कैमरों की खपत बढ़ी है। बात चाहे जो हो,लेकिन एक सच तो हमें स्वीकार करना होगा कि,इन कैमरों की मदद से अपराध में कमी तो नहीं आई है,हां अपराध उजागर ज़रुर होने लगे हैं। यह कैमरा अपराध के बाद उसकी असलियत तो बता सकता है कि, किन्तु अपराध,कामचोरी,बेईमानी,चरित्रहीनता,स्वार्थ,हिंसा की प्रवृति को कैसे रोक सकता है। कहीं-न-कहीं सामाजिक स्तर पर कुछ तो गलत हो रहा है,जिस वजह से हमें हर जगह इन कैमरों की ज़रुरत पड़ रही है। बढ़ते भौतिकवाद,व्याभिचार,अति महत्वाकांक्षा,असन्तुलित जीवन-शैली,पारिवारिक विघटन,सामन्जस्य और परिपक्वता का अभाव,सबके पास स्मार्ट फ़ोन होने पर भी सार्थक संवाद का अभाव,विषाद-अवसाद,होड़,वासना व अन्य कईं कारक हैं,जो हमारे सामाजिक जीवन को खतरनाक ढंग से प्रभावित कर रहें हैंl
मन में एक सवाल आया कि,क्या इन कैमरों की बढ़ती खपत इंसान की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह खड़े नहीं करती है ? इंसान खुद अनुशासित नहीं रह पा रहा है,अपने कर्तव्यों को निष्ठा से नहीं कर रहा है,वह चोर है,व्याभिचारी है,कपटी है ,हिंसक है और केवल कैमरे की मौजूदगी में भय से अगर वह अपने-आपको रोक कर रखे हुए है,तो सोचिए कि इंसान के तौर पर हम एक-दूसरे के प्रति विश्वास को किस हद तक खो चुके हैं। अगर कैमरा है,तो डर है,नहीं तो हम कुछ भी गलत करने को स्वतंत्र हैं…तो हम क्या मनुष्य हैं? माना कि अपराध की प्रवृत्तियां कुछ इस तरह से बदली हैं कि अब किसी पर यकीन करना बेहद मुश्किल है,किंतु हो यह रहा है कि हम किसी पर भी यकीन नहीं कर पा रहें है। संदेह के इस दौर में हर घर में सीसीटीवी कैमरा लगवाया जा रहा है। रिश्तेदार,पति-पत्नी,सास-ससुर,बेटा-बहू,माता-पिता जब कैमरे की जद में है तो सोचिए कि हमारे बीच के विश्वास,प्रेम और संबंधों की गरिमा किस कदर खंडित हुई है..। क्या यह माना जाए कि,आधुनिक मनुष्य को बिना किसी डर के नियंत्रित नहीं किया जा सकता है? क्या खुद की नैतिकता,कार्य के प्रति ईमानदारी ,संबंधों में पवित्रता,सामाजिक बहिष्कार का भय,स्वनियंत्रण,उच्च चरित्र अब केवल कैमरे की निगरानी में ही संभव है या कि अब ये सब किसी और युग की बातें है। आत्मा से बड़ा और कोई सीसीटीवी कैमरा नहीं होता,पर आधुनिक युग की सबसे बड़ी उपलब्धि और सबसे बड़ा विकास यही है कि सबसे उन्नत प्रजाति `होमो सेपियन्स` ने अपने आत्मारुपी सीसीटीवी कैमरे पर काला कपड़ा डालना सीख लिया है और वह बहुत विकसित हो गया है।
#डॉ.गरिमा संजय दुबे
रचना जी नमस्कार। आपकी चिंताएं जायज़ हैं। लेकिन हम आपके लेख में उल्लेखित इन सभी समस्याओ का मूल वर्तमान समय में प्रचलित नये मापदंड ,नैतिकता की कमी, मूल्यों का ह्रास, प्रेम की कमी, भौतिकता के बढ़ते प्रभाव और अंतहीन लालसाओं को मान सकते है। फिर भी आप, हम और सभी मिलकर अपने स्तर पर प्रयास करें तो निश्चित ही एक बेहतर दुनिया को बनाने में हम अपना योगदान दे सकेंगे। किसी ने बहुत खूब कहा है कि
माना कि अँधेरा बहुत घना है
मगर एक दीपक जलाना कहाँ मना है।
बिलकुल सार्थक बात
Didi save girl.