सनद रहें ! देश में आम चुनाव है…

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arpan jain

अफरा-तफरी का दौर शुरू हो गया, आवाजाही पर संदेह शुरू है, बैण्ड बाज़ा बारात भी तैयार है, हर तरफ चुनावी शौर है, वादों की बौछार है, कोई पिछले 70 सालों के हिसाब दे रहा है तो कोई पाँच सालों की खतौनी कर रहा हैं, कोई राज्य का विकास गिना रहा है तो कोई ऊँट के मुहँ में जीरे जैसा किसानों के कर्ज माफी को भुना रहा है, कही आतंक का सूपड़ा साफ बताया जा रहा है तो कोई सेना के शौर्य के सबूत मांग रहा है, कोई वैश्विक प्रगति दिखा रहा है तो कोई बढ़ती बेरोज़गारी बता रहा है, कोई आदमकद सरदार बता रहा है तो कोई यथावत मुँह बाहें खड़ी भुखमरी गिना रहा है, कोई साफ़ स्वच्छ शहर भुना रहा है तो कोई राफेल के घोटालों की स्वच्छता बता रहा है, कोई मुँह तोड़ जवाब दिखा रहा है तो कोई महागठबंधन को सार्वभौमिक स्वीकार बता रहा है। खैर सबके अपने-अपने विषय है, अपने-अपने मुद्दे, क्योकि देश में आम चुनाव हैं।

हर पांच साल में एक समय ऐसा आता ही है जब समूचा देश एक हो कर केवल सुनता है, भरोसा करता है, ठगा भी महसूस करता है, और खामोशी से अपने मत को दान कर आता है। परिणाम की परवाह तो रहती है पर उसके बाद आए खौखले भूचाल से जनमानस हतप्रद भी रह ही जाता है।

आज़ादी के बाद विगत 7 दशकों से तो यही क्रम यथावत चला आ रहा है, हर बार यही होता आया है, पहले भी घोटालों का अंबार था, अब भी है, आतंक की समस्या पहले दिन से बरकरार है, आज भी जीवित तो यही है, पहले भी वादे और वादाखिलाफी होती थी, आज भी वही यानी नया कुछ नहीं। पंच वर्षीय कार्यक्रमों की तरह चुनाव भी महज घोषणा पत्र होते जा रहे है। नागनाथ और साँपनाथ के बीच चयन की दुधारी तलवार पर चलना सदा से ही मतदाता का कार्य रहा है। इस बार भी यह मौका आ ही गया, जब जनता को चुनना होगा अपना नेता, अपनी सरकार और अपने साथ-साथ राष्ट्र की प्रगति।

बहरहाल ये समय इतना कठिन होता है कि जनता विश्वास नहीं कर पाती कि कौन सही-कौन गलत। यत्र तत्र सर्वत्र केवल यही चकल्लस व्याप्त है कि अगला प्रधानमंत्री कौन, क्या 56 इंची सीना लौटेगा, क्या चौकीदार ने सही चौकीदारी की या फिर देश का पैसा लेकर भागने वालों की मदद की, या सर्वहारा वर्ग को छोड़कर उद्योगपतियों के दिल जीता। सवाल कई है, पर सवालों की जड़ में केवल विश्वास की खाद ही डाली जा रही है। विश्वास न करने के कई कारण है भी और विश्वास करने के भी। इन सब के बीच कहीं कुछ गायब है तो वो है मुद्दे। मुद्दों की राजनीति गौण है, और सवाल कहीं नजर नहीं आ रहे। देश का प्रधानमंत्री चौकीदार बनने पर आमादा है तो वही मंत्री परिषद सब के सब चौकीदार हो गए। अजीब किस्सागौई है देश में, जहाँ एक तरफ भूख और बेरोजगारी से जूझता देश वासी है तो दूसरी तरफ मंदिर-मस्ज़िद का मसला, आतंक का हश्र और फिर कहीं चौकीदार की कहानी खड़ी हुई है। आमचुनाव एक तरह से मतदाता के लिए तो सरदर्द ही लेकर आता है, नेता तो अपने भविष्य के लिए जद्दोजहद करता है, पर मतदाता लोक लुभावन वादों में फंस जाता है। अबकी बार मतदाता को जागरूकता और सजगता के साथ मतदान करना होगा। वर्ना अब मौका हाथ से जाने पर फिर देश पाँच साल पीछे चला जाएगा। जनता के दरबार में फिर आपका नेता आएगा हाजरी लगाने, पर जनता को समझदारी से चुनना है अपना नेता अपनी सरकार जो देश को विकास के रास्ते प्रगति पथ पर अग्रसर करें, अन्यथा राष्ट्र फिर विसंगति के दौर से हारेगा हर बार और कमजोर होगा।

#डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’

परिचय : डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ इन्दौर (म.प्र.) से खबर हलचल न्यूज के सम्पादक हैं, और पत्रकार होने के साथ-साथ शायर और स्तंभकार भी हैं। श्री जैन ने आंचलिक पत्रकारों पर ‘मेरे आंचलिक पत्रकार’ एवं साझा काव्य संग्रह ‘मातृभाषा एक युगमंच’ आदि पुस्तक भी लिखी है। अविचल ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में स्त्री की पीड़ा, परिवेश का साहस और व्यवस्थाओं के खिलाफ तंज़ को बखूबी उकेरा है। इन्होंने आलेखों में ज़्यादातर पत्रकारिता का आधार आंचलिक पत्रकारिता को ही ज़्यादा लिखा है। यह मध्यप्रदेश के धार जिले की कुक्षी तहसील में पले-बढ़े और इंदौर को अपना कर्म क्षेत्र बनाया है। बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग (कम्प्यूटर  साइंस) करने के बाद एमबीए और एम.जे.की डिग्री हासिल की एवं ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियों’ पर शोध किया है। कई पत्रकार संगठनों में राष्ट्रीय स्तर की ज़िम्मेदारियों से नवाज़े जा चुके अर्पण जैन ‘अविचल’ भारत के २१ राज्यों में अपनी टीम का संचालन कर रहे हैं। पत्रकारों के लिए बनाया गया भारत का पहला सोशल नेटवर्क और पत्रकारिता का विकीपीडिया (www.IndianReporters.com) भी जैन द्वारा ही संचालित किया जा रहा है।लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं।

 

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।