” बाबा ! ऐसा मत करिए. वे जी नहीं पाएंगे,” बेटी ने अपने पिता को समझाने की कोशिश की.
” मगर, हम यह कैसे बरदाश्त कर सकते हैं कि हमारी बेटी अलग रीतिरिवाज और संस्कार में जीए. हम यह सहन नहीं कर पाएंगे. इसलिए तुम्हें हमारी बात मानना पड़ेगी.”
” नहीं बाबा ! मैं आप की बात नहीं मान पाऊंगी. मैं अब नौकरी पर लग चुकी हूं. उन के सुखी रहने के दिन अब आए है. उन्हें नहीं छोड़ सकती हूं.”
पर, पिताजी नहीं माने, ” तुम्हें हमारे साथ चलना होगा. अन्यथा हम मुकदमा लगा देंगे. आखिर तुम हमारी संतान हो ?”
” आप नहीं मानेगे, ” बेटी की आंख में आंसू आ गए. वह बड़ी मुश्किल से बोल पाई, ” बाबा ! यह बताइए, जब आप ने दो भाई और चार बेटियों में से मुझे बिना बच्चे के दंपत्ति को सौंप दिया था, तब आप का प्यार कहां गया था ?” न चाहते हुए वह बोल गई, ” मेरे असली मातापिता वहीं है.”
” वह हमारी भूल थी बेटी, ” बाबा ने कहा तो बेटी उन के चरण स्पर्श करते हुए बोल उठी, ” बाबा ! मुझे माफ कर दीजिएगा. मगर, यह आप सोचिएगा, यदि आप मेरी जगह होते और आप के जैविक मातापिता आप को जन्म देने के बाद किसी के यहां छोड़ देते तो आप ऐसी स्थिति में क्या करते ?” कहते हुए बेटी आंसू पौंछते हुए चल दी.
बेटी की यह बात बाबा को अंदर तक कचौट गई. वे कुछ नहीं बोल पाए. उन का हाथ केवल आशीर्वाद के लिए उठ गया.
#ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘
प्रकाश'
परिचय : ओमप्रकाश क्षत्रिय का उपनाम `प्रकाश` है। आप पेशे से शासकीय विद्यालय में सहायक शिक्षक हैं।आपका जन्म-२६ जनवरी १९६५ का हैl आपने शिक्षा में योग्यता के तहत बी.ए. ३ बार और एम.ए. ५ विषयों में किया हुआ है। श्री क्षत्रिय का निवास-मध्यप्रदेश के रतनगढ़(नीमच) में हैl लेखन विधा में आप बाल कहानी, लेख,कविता तथा लघुकथा लिखते हैं। विशेष उपलब्धि यही है कि,२००८ में २४,२००९ में २५ व २०१० में १६ बाल कहानियों का ८ भाषाओं में प्रकाशन हुआ है। आपको २०१५ में लघुकथा के क्षेत्र में सर्वोत्कृष्ट कार्य के लिए जय-विजय सम्मान प्राप्त हुआ है। हिंदी के साथ ही अन्य भाषाओं से भी आपको प्रेम है।