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कभी कभार ये आईने
अठखेलियां करते
खुद की पहचान हेतु
जब भी भटकते रहते
आते मेरे ही पास
स्वयं को देखने के लिए
और तो और
लौट भी जाते
लज्जित होकर
मैं ही पुकारता रहता
देर तक
उसको ही
फिर दूर जाकर
बोला वह
मित्र बेहतर है रहना
होकर “अकेला”ही
वो भी
तुम्हारी ही तरह
#राम बहादुर राय “अकेला”एम.ए.(हिन्दी, इतिहास ,मानवाधिकार एवं कर्तव्य, पत्रकारिता एवं जनसंचार),बी .एड.मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं स्वतंत्र पत्रकार,बलिया (उत्तर प्रदेश)
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