भारत की राजनीति में एक नया अध्याय जुड़ गया है, जिसके अपने राजनीतिक समीकरण हैं। जोकि आज के समय में प्रत्येक जगह चर्चा का विषय बना हुआ है। छोटी से छोटी जगह से लेकर बड़ी से बड़ी जगह पर आजकल चर्चाएं हो रही हैं। सामान्य जनता हो अथवा नेता चाय की दुकान हो अथवा बाजार, शहरी क्षेत्र हो अथवा ग्रामीण, समाचार पत्र हो अथवा टेलीविज़न, प्रत्येक जगह एक ही चर्चा आजकल चरम पर है। वह यह कि प्रियंका गाँधी वाड्रा की कांग्रेस में इंट्री। यह एक ऐसा विषय है जिसपर पक्ष एवं विपक्ष दोनों चर्चा कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के नेता जहां प्रियंका में इंद्रा जी की तस्वीर को खोजते हुए पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंद्रा गाँधी की रूप रेखा होने की बात कर रहा हैं वहीं विपक्षी पार्टी भाजपा के नेता हल्के हाथों से लेते हुए कांग्रेस का अंतिम प्रयोग कह रहे हैं। परन्तु एक बात तो सत्य है कि कांग्रेस पार्टी का कार्यकर्ता प्रियंका गाँधी वाड्रा का राजनीति में प्रवेश से अत्यधिक उत्साहित दिख रहा है। कांग्रेस का एक सामान्य रूपी कार्यकर्ता लखनऊ में प्रियंका के रोड शो से काफी उत्साहित दिख रहा है। परन्तु, प्रश्न यह है कि क्या प्रियंका कुछ करिश्मा कर पाएंगी यह समय ही बताएगा। प्रियंका को कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के ठीक पहले राजनीति में अधिकारिक रूप से उतारा दिया है। कांग्रेस ने प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश की ज़िम्मेदारी दी है।
ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा राज्य है इसलिए कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश को दो व्यक्तियों के कंधों पर जिम्मेदारियों को बाँटकर रखा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी जहां कांग्रेस के उभरते हुए युवा नेता सिंधिया के कंधों पर टिकी हुई है। वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी प्रियंका गाँधी वाड्रा के कंधों पर है। उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों की जिम्मेदारी का बँटवारा भी दोनों नवनियुक्ति प्रदेश पदाधिकारियों के मध्य कर दिया गया है। परन्तु, इस बार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अलग ही अंदाज में अपने शब्दों को प्रस्तुत किया है। राहुल गाँधी ने कहा कि हम 2019 के चुनाव के लिए यह टीम नहीं बना रहे हैं अपितु यह टीम 2022 के उत्तर प्रदेश के विधान सभा के चुनाव के आधार पर बना रहे हैं। आने वाले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस की भारी जीत होगी और उत्तर प्रदेश में इस बार कांग्रेस की सरकार बनेगी। राहुल गाँधी ने कहा कि उत्तर प्रदेश की जनता अब बदलाव चाहती है। वह परस्पर ठगी का शिकार हुई है। अब प्रदेश की जनता इस राजनीति से त्रस्त हो चुकी है अब उत्तर प्रदेश की जनता प्रदेश में कांग्रेस की सरकार चाहती है। जिसका समर्थन प्रियंका ने भी किया। प्रियंका ने भी भविष्य में उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस की अहम भूमिका होने की बात के संकेत दिए। एक बात तो स्पष्ट है कि जिस तरह से प्रदेश की राजधानी में प्रियंका का स्वागत समारोह हुआ है वह भविष्य की राजनीति में अलग ही पटकथा लिखने के संकेत देता हुआ दिखाई दे रहा है। अब सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि राजनीति में जनाधार का खेल होता है, तो देखना यह दिलचस्प होगा कि किस पार्टी का जनाधार खिसक-कर कांग्रेस पार्टी के साथ जुड़ेगा यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि, भारतीय जनता पार्टी का जनाधार तो कांग्रेस में जुड़ने वाला नहीं। भाजपा एवं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का अपना व्यक्तिगत जनाधार है जोकि किसी से भी छिपा हुआ नहीं है। भाजपा एवं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का अपना एक व्यक्तिगत जनाधार है जिसका कांग्रेस के साथ जाने की संभावना ही नहीं बनती। अब प्रश्न यह उठता है कि जब भाजपा का जनाधार कांग्रेस के साथ नहीं जा सकता तो कांग्रेस 2022 में प्रदेश में अपनी सरकार बनाने के लिए जनाधार कहां से लाएगी। क्योंकि, जनाधार कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसका प्रोडक्शन एवं निर्माण किया जा सके। यदि कांग्रेस पार्टी अपने जनाधार को मजबूत करती है तो निश्चित प्रदेश की किसी राजनीतिक पार्टी का इसका बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। क्योंकि, जनाधार तभी जुड़ेगा जब किसी भी दूसरी पार्टी से टूटेगा। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के इस प्रियंका एवं सिंधिया रूपी प्रयोग से किस पार्टी का नुकसान होता है। इसलिए की कांग्रेस के उत्तर प्रदेश में अपना जनाधार खोने के बाद से दो बड़ी पार्टियां बनकर उभरी हैं जोकि क्रमशः सपा-बसपा के रूप में प्रदेश की सरकार में अपना दखल रखती आई हैं। इस बार भाजपा के प्रवेश करने के कारण दोनों पार्टियों ने आपस में एक बार फिर से गठबंधन कर लिया और 2019 का लोकसभा का चुनाव एक साथ लड़ने का संदेश दिया है। जिससे कांग्रेस को बाहर रखा गया है।
अब देखना यह दिलचस्प होगा कि प्रियंका और सिंधिया कांग्रेस मे कितनी जान फूँक पाते हैं। यदि कांग्रेस के यह दोनों रणनीतिकार कांग्रेस के लिए वास्तव में कुछ कर पाए तो यह निश्चित है कि उत्तर प्रदेश में किसी एक पार्टी के जनाधार का सफाया होना तय है। क्योंकि, प्रियंका के आने से प्रदेश में गठबंधन के नेताओं के सुर जिस तरह बदलने लगे हैं उससे साफ दिख रहा है कि अब गठबंधन के नेताओं को अपने जनाधार के खिसकने का भय अभी से ही सताने लगा है।
विचारक ।
(सज्जाद हैदर)